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वाराणसी

धान की सीधी बुवाई के ज़रिये किसान आसानी से खेती में लगने वाली अपनी लागत एवं मेहनत में कमी ला सकते हैं-कृषि उत्पादन आयुक्त

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जिससे किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी और यह तकनीक किसानों की आजीविका में उन्नति लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है-मनोज कुमार सिंह

डी.एस.आर. की मदद से जहाँ एक ओर जल संरक्षण में सहयोग मिलेगा वही किसानों को लागत में सहायता मिलेगी-अपर मुख्य प्रमुख सचिव, कृषि विभाग

डी.एस.आर को लोकप्रिय बनाने के लिए सबसे पहले हमे इसके सभी लाभों को सही तरह से समझना होगा-डॉ देवेश चतुर्वेदी

   वाराणसी। प्रदेश में चावल खेती में कार्बन उत्सर्जन को कम करने एवं जल संरक्षण पर आयोजित कार्यशाला अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में चावल की सीधी बुवाई की तकनीक पर कार्यशाला का किया गया आयोजन

डी.एस.आर./चावल की सीधी बुवाई से किसानों की लागत में कमी पर हुई चर्चा तकनीक के ज़रिये कार्बन उत्सर्जन में कमी और जल संरक्षण को भी मिलेगा बढ़ावा कार्यशाला के ज़रिये किसानों को कार्बन क्रेडिट से सम्बंधित लाभ मिलने के अवसरों की भी हुई चर्चा विभिन्न राज्यों से आये 24 से ज्यादा किसानों के साथ-साथ मशीनरी विक्रेता, बीज और दवाई निर्माता प्रमुख कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी लिया हिस्सा प्रतिभागी किसानों ने डी.एस.आर/ धान की सीधी बुवाई से खेती करने के अनुभव भी साझा किये।
कार्यशाला में प्रमुख बिंदु एवं मुख्य आकर्षण रहा कि अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आई.आर.आर.आई.), वाराणसी और वर्ल्ड बैंक द्वारा संचालित संस्था “2030 Water Resource Group (2030 डब्लू.आर.जी) के संयुक्त तत्वाधान में एक कार्यशाला “राइस 2.0- ट्रांस्फोर्मिंग राइस कल्टीवेशन इन उत्तर प्रदेश” का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला के ज़रिये किसानों को डायरेक्ट सीडेड राइस (डी.एस.आर.) कृषि तकनीक के तहत कार्बन उत्सर्जन को कम करने एवं जल संरक्षण के बारे में जानकारी प्रदान की गयी| साथ ही इस कार्यशाला के माध्यम से उत्तर प्रदेश में ‘डायरेक्ट सीडेड राइस’ के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों और डी.एस.आर तकनीक से खेती की लागत में आने वाली कमी के बारे में भी चर्चा की गयी जिससे किसान वृहद् स्तर पर डी.एस.आर खेती को अपनाएँ।
इस कार्यशाला में उत्तर प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त मनोज कुमार सिंह, डॉ. देवेश चतुर्वेदी, अतिरिक्त प्रमुख सचिव, कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार, डॉ.के.वी.राजू, मुख्मंत्री के आर्थिक सलाहकार, उत्तर प्रदेश सरकार, , डॉ.पंजाब सिंह, भूतपूर्व कुलपति, बी.एच.यू., डॉ.ए.के. सिंह, निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अलकेश वाधवानी, निदेशक, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, डॉ. सुधांशु सिंह, निदेशक, अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (वाराणसी), डॉ. अजय कोहली, उप महानिदेशक, अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, अजित राधाकृष्णन, राष्ट्रीय समन्वयक,WRG, डॉ यशवंत सिंह, महानिदेशक, कृषि विज्ञान संस्थान ,बी.एच.यू. , डॉ संजय सिंह, उपकार के महानिदेशक, डॉ अजय माथुर – महानिदेशक अंतर्राष्ट्रीय सोलर अलायन्स, श्री सुदीप्तो सरकार- ग्लोबल प्रोग्राम मैनेजर 2030 WRG आदि उपस्थित रहे| साथ ही, इस कार्यशाला में तीन राज्यों (उत्तर प्रदेश, पंजाब, ओडिशा ) के 24 से ज्यादा किसानों एवं मशीनरी विक्रेता, बीज और दवाई निर्माता प्रमुख कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2030 डब्ल्यू.आर.जी., बिल एवं मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (बी.एम.जी.एफ.) और निजी क्षेत्र के सक्रिय समर्थन से राज्य में अत्यधिक प्रभावशाली योजना “Uttar Pradesh Program for Agricultural Transformation and Increased Incomes (UP PRAGATI)” की शुरुआत की है। इस योजना का उद्देश्य राज्य में कृषि का विकास, किसानो द्वारा प्रभावी जल तकनीक का उपयोग   और कार्बन उत्सर्जन को कम करने वाले क्रियाकलाप को बढ़ाना है। यह परिवर्तन तकनीकी और संस्थागत नवाचारों दोनों के समन्वय से ही संभव है। अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान द्वारा धान की सीधी बुबाई (डी.एस.आर) पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ और खेती की लागत में कमी लाकर किसानों की आय बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है| साथ ही, यह तकनीक चावल उत्पादक खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिए विश्व स्तर पर परीक्षण किए जा रहे संभावित समाधानों में से एक है। ये कदम  कार्बन उत्सर्जन को कम और जल संरक्षण को पूरा करने और किसानों की आय बढ़ाने की दोहरी चुनौतियों को कम करने की दिशा में सबसे आगे हो सकता है। एवं भविष्य में राज्य के कृषकों को कार्बन क्रेडिट से सम्बंधित लाभ मिलने के अवसरों का निर्माण होगा|
कार्यशाला की शुरुआत उपस्थित गणमान्यों को अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान द्वारा भेंट प्रदान कर किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. मनोज सिंह एन कहा, “ इस कार्यशाला में उपस्थित किसान उन राज्यों से हैं जो धान उत्पादक में प्रमुख माने जाते हैं। धान की सीधी बुवाई के ज़रिये किसान आसानी से खेती में लगने वाली अपनी लागत एवं मेहनत में कमी ला सकते हैं। जिससे किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी और यह तकनीक किसानों की आजीविका में उन्नति लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है| ”
डॉ. ए.के.सिंह ने कार्यक्रम में अपने विचार साझा करते हुए कहा, “ डी.एस.आर या धान की सीधी बुवाई के ज़रिये किसानो की आय में बढ़ोतरी के साथ पर्यावरण संरक्षण में भी सहयोग मिल सकता है| धान की सीधी बुवाई से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधर आ सकता है जिससे मिट्टी जायद उपजाऊ बन सकती है|”
कार्यशाला में विभिन्न सत्रों के ज़रिये उपस्थित गणमान्यों ने धान की सीधी बुवाई (डी.एस.आर) तकनीक, डी.एस.आर तकनीक अपनाने के लिए उत्प्रेरक के रूप में एकत्रीकरण और मशीनीकरण का प्रयोग, बाज़ार में उपलब्ध अवसर आदि के बारे में अपने विचार व्यक्त किये।
डॉ. पंजाब सिंह ने भारत में धान की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि धान हमारे मुख्य फसलों में से एक है| धान की खेती में किसानों की उपज और आय बढ़ाने के साथ-साथ डी.एस.आर. तकनीक पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी उपयोगी साबित हो सकती है| अगर किसान इस तकनीक को अपनाकर इसे बढ़ावा दें तो वे अपनी आजीविका को बेहतर बनाने के साथ पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं|
डॉ. सुधांशु, निदेशक, ISRAC ने डी.एस.आर. तकनीक पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा , “ अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में हम धान की बेहतर किस्मों के उत्पादन एवं धान खेती से जुड़ी उन्नत तकनीकों के निर्माण में निरंतर प्रयासरत हैं। डी.एस.आर. तकनीक या धान की सीधी बुवाई ग्रीन हाउस गैसों के उत्पादन में कमी लाने में भी सक्षम हैं। साथ ही इस तकनीक के ज़रिये सामान्य धान की खेती से बहुत कम पानी का उपयोग होता है जो जल संरक्षण की दिशा में काफी योगदान प्रदान कर सकता है।”
डॉ. पंजाब सिंह की अध्यक्षता में प्रथम सत्र का आयोजन किया गया| इस सत्र में डी.एस.आर. तकनीक से खेती कर रहे किसानों ने सभी के समक्ष धान की सीधी बुवाई से खेती करने के अपने अनुभव साझा किये| ओडिशा की माल्हो मरांडी पिछले एक वर्ष से धान की सीधी बुवाई से खेती कर रही हैं, जिससे उनकी खेती की लागत में काफी गिरावट आई और फसल की मात्रा में भी बढ़ोतरी हुई जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा प्राप्त हुआ
साथ ही इस सत्र में सीधे बुवाई से सम्बंधित मशीनरी उत्पादन पर चर्चा एवं राज्य में डी.एस.आर तकनीक को बढ़ावा देने की नीति का भी निर्धारण किया गया| अपराहन सत्र में डॉ. के.वी. राजू, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश के आर्थिक सलाहकार की अध्यक्षता में दो सत्र का आयोजन किया गया जिसमे डी.एस.आर को राज्य में लोकप्रिय बनाने हेतु आवश्यक घटकों पर चर्चा की गयी एवं राज्य में कार्बन मार्किट के निर्माण एवं उससे सम्बंधित लाभ के विषय में चर्चा की गयी| कार्यशाला के अंतिम सत्र में डॉ सुधांशु सिंह एवं श्री अजित राधाकृष्णन द्वारा उत्तर प्रदेश में धान की सीधी बुवाई को लोकप्रिय बनाने हेतु आवश्यक रूप-रेखा एवं कार्बन अलायन्स का ढांचा तैयार करने हेतु चर्चा की गयी| कार्यक्रम के अंतिम सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. देवेश चतुर्वेदी ने कहा, “ डी.एस.आर. की मदद से जहाँ एक ओर जल संरक्षण में सहयोग मिलेगा वही किसानों को लागत में सहायता मिलेगी| डी.एस.आर को लोकप्रिय बनाने के लिए सबसे पहले हमे इसके सभी लाभों को सही तरह से समझना होगा| धान की सीधी बुवाई की पहुँच बढ़ाने के लिए हमे छोटे-छोटे किसानों से इस तकनीक की शुरुआत करनी होगी और किसानों को उचित प्रशिक्षण के ज़रिये सक्षम करना होगा। साथ ही, डी.एस.आर की पहुँच बढ़ाने के लिए हम किसान उत्पादक संस्थाओं की भी मदद ले सकते हैं।” सत्र का समापन डॉ. के.वी.राजू राजू और डॉ.अजय कोहली द्वारा अपने विचार व्यक्त करते हुए किया गया जिसमे उन्होंने धान की सीधी बुवाई (डी.एस.आर) को भविष्य की तकनीक बताते हुए इस बात पर बल दिया कि जल-जमीन-जलवायु का समन्वय बनाते हुए सतत विकास की ओर बढ़ने में डी.एस.आर तकनीक महती भूमिका निभा सकता है। धान की सीधी बुबाई का उपयोग न केवल श्रमिकों की आवश्यकता को कम करेगा बल्कि मृदा स्वास्थ, जल संरक्षण और किसानो की उत्पादकता को बढ़ाने में भी मदद करेगा।  यदि किसान इसे व्यापक रूप से अपनाये  तो यह राज्य में चावल की खेती को और अधिक प्रगतिशील करने में मददगार साबित होगा। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य सरकार और निजी संगठनो के सहयोग से उत्तम चावल की खेती की तकनीकी का प्रसार और उत्तर प्रदेश में  ईरी, 2030 डब्ल्यू.आर.जी. एक साथ मिलकर इस परियोजना का क्रियान्वयन करना है, जिससे उत्तर प्रदेश के ज्यादा से ज्यादा किसान इस तकनीकी के प्रयोग से लाभान्वित हो सके। 
ईरी भारत में बीजो की सीधी बुबाई के माध्यम से कई स्टेकहोल्डर के साथ अंतर्प्रजातियो तथा संकर प्रजातियों एवं उनके खरपतवार की पहचान, उच्च उत्पादन क्षमता, खरपतवारो से बचाव, अच्छी चावल की किस्मो का उत्पादन, जल प्रबंधन आदि सराहनीय कार्य कर रहा है। कार्यशाला के अंत में डॉ. योगेश बंधू आर्य, राज्य समन्वयक, वाटर रिसोर्स ग्रुप द्वारा धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यशाला का समापन किया गया।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में चांदपुर स्थित अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र का उद्घाटन कर किसानों को बड़ा तोहफा दिया हैं। इस अनुसंधान केंद्र में चावल की पैदावार और उसकी गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए शोध किया जाता हैं। इस केंद्र का फायदा पूर्वांचल ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत से जुड़े राज्यों को भी मिल रहा हैं। बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड आदि राज्यों में धान की खेती बड़ी मात्रा में होती है। इस अनुसंधान केंद्र में काला नमक, राजरानी, बादशाह पसंद और ब्लैक चावल जैसी उत्कृष्ट प्रजातियों की उत्पादकता पर भी शोध किया जाता हैं। पूर्वांचल की जलवायु और मिट्टी में होने वाली सुगंधा, बासमती और मंसूरी समेत अन्य हाईब्रिड प्रजातियों की गुणवत्ता, पैदावार, स्वादिष्टता, खुशबू और पौष्टिकता आदि को बढ़ाने का काम इस अनुसंधान केंद्र में किया जा रहा है। केंद्र में विभिन्न किस्म के अच्छे जीन लेकर नई किस्म विकसित किया गया है। मधुमेह की बीमारी को ध्यान में रखते हुए यहां धान की गुणवत्ता में सुधार के लिए भी कार्य किया गया हैं। करीब 93 करोड़ रुपये की लागत से बना यह अनुसंधान केंद्र पूर्वी भारत का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय संस्थान है।

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