गाजीपुर
दैविक आपदाओं से पहले पशु-पक्षियों का व्यवहार बनता है चेतावनी का संकेत

प्राकृतिक संकेतों को पहचानने की अद्भुत क्षमता, वैज्ञानिक भी मानते हैं खास इंद्रिय क्षमता
बहरियाबाद (गाजीपुर)। प्राकृतिक आपदाओं से पहले पशु-पक्षियों का असामान्य व्यवहार अक्सर चर्चा का विषय बनता रहा है। विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों का मानना है कि पशु-पक्षियों में तीव्र इंद्रियों और पर्यावरण से गहरे जुड़ाव के कारण वे दैविक आपदाओं जैसे भूकंप, सुनामी या तूफान के आने से पहले ही अनहोनी को भांप लेते हैं।
ये जीव इंसानों की तुलना में कहीं अधिक संवेदनशील होते हैं और वातावरण में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों जैसे ज़मीन में कंपन, गैसों का रिसाव, हवा का दबाव या तापमान में बदलाव को तुरंत महसूस कर लेते हैं। इसका असर उनके व्यवहार में साफ दिखाई देता है।
पशु-पक्षियों में दिखते हैं ये बदलाव:
पालतू कुत्ते और बिल्लियाँ अचानक घबराकर लगातार भौंकने या म्याऊँ करने लगते हैं।
पक्षी असामान्य रूप से शोर करने लगते हैं या झुंड बनाकर एक दिशा में उड़ने लगते हैं।
मछलियाँ पानी की सतह से बाहर कूदने लगती हैं या झुंड में एक ही दिशा में तैरती हैं।
जानवर अपने ठिकानों को छोड़कर ऊँचाई या सुरक्षित जगह की ओर भागते हैं।
कई बार पालतू जानवर मालिकों से अत्यधिक चिपकाव दिखाते हैं और अलग नहीं होना चाहते।
वैज्ञानिकों की राय:
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि उनकी इंद्रियों की विशेष संवेदनशीलता का प्रमाण है। कुछ जानवर इन्फ्रासाउंड (बहुत कम आवृत्ति की ध्वनियाँ) को सुन सकते हैं, जो भूकंप या तूफानों से पहले उत्पन्न होती हैं। वहीं कुछ पक्षियों की दृष्टि इतनी तीव्र होती है कि वे दूर से ही प्राकृतिक असंतुलन को देख पाते हैं।
भूकंप से पहले ज़मीन के नीचे होने वाली हलचल या गैस रिसाव, तूफान से पहले हवा की नमी व दबाव में बदलाव ये सभी संकेत पशु-पक्षी जल्दी पकड़ लेते हैं। इसी कारण आपदाओं के पहले इनके व्यवहार में अचानक परिवर्तन दिखता है, जो मानव समाज के लिए एक संभावित चेतावनी हो सकती है।
प्राकृतिक मित्र हैं पशु-पक्षी:
प्रकृति के साथ गहरे तालमेल में रहने वाले ये जीव मानव समाज को अप्रत्यक्ष रूप से आपदाओं के प्रति आगाह करते हैं। वैज्ञानिकों का सुझाव है कि यदि इनके व्यवहार का गहराई से अध्ययन किया जाए, तो आपदाओं की पूर्व चेतावनी प्रणाली को और सशक्त बनाया जा सकता है।
इस विषय में जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है ताकि हम भी इन ‘प्राकृतिक संकेतकों’ से सबक ले सकें और समय रहते सतर्क हो सकें।