गाजीपुर
देश की आजादी में कटघरा के राम सिंह ‘दादा’ का विशेष योगदान

स्तंभ स्थल के सुंदरीकरण की मांग
नंदगंज (गाजीपुर)। जनपद सदैव शहीदों एवं वीरों की धरती रही है। यहां के वीर सपूतों ने भारत की आजादी से लेकर देश की सीमा की रक्षा करने में हमेशा एक कदम आगे रहे हैं। ऐसे बहुत से वीर सपूत हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन सरकार या समाज से उसके बदले कोई भी उम्मीद नहीं रखी थी।
ऐसे ही देश की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गाजीपुर धरती के कटघरा गांव निवासी वीर सपूत स्व० राम सिंह उर्फ रामा दादा का नाम बड़े ही श्रद्धा के साथ लिया जाता है। उन्होंने देश की आजादी हेतु जेल भी गए, लेकिन आजादी के बाद सरकार से पेंशन व जमीन की सुविधाएं नहीं लीं। इसी कारण उनके क्षेत्र के लोग आज भी दादा के सेनानी स्तंभ पर 15 अगस्त को एकजुट होकर झंडा फहराते हैं।
क्रांतिकारी राम सिंह उर्फ रामा दादा का जन्म सन 1895 में शादियाबाद थाना क्षेत्र के कटघरा गांव में एक राजपूत परिवार में हुआ था। वह शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। इनके पिता स्व० खेदू सिंह उस समय के जमींदार थे और समाज में उनके परिवार की एक अलग प्रतिष्ठा थी। कटघरा गांव के ही एक 92 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति जगदीश बिंद ने महान क्रांतिकारी स्व० रामा दादा के बारे में बताया कि रामा दादा के अंदर बचपन से ही नेतृत्व करने की क्षमता थी। उन दिनों जनपद के क्रांतिकारी पब्बर राम, सरजू पांडेय तथा झिलमिट राम सहित अनेक लोगों का रामा दादा के घर आना-जाना लगा रहता था। उनके घर पर ही बैठकें होती थीं। यही नहीं, ये सभी लोग रामा दादा को अपना गुरु भी मानते थे।
देश की आजादी के पहले अंग्रेजों का राज्य था। सभी लोग डर-डर कर रहते थे। यहां तक कि गांव में लाल टोपी देखकर लोग घर में घुस जाते थे। उन्होंने कुछ सोचते हुए बताया कि एक समय की बात है कि कटघरा पूरब पट्टी में बरहपुर गांव के स्व० सहदेव सिंह और स्व० रामचरितर सिंह के साथ रामा दादा बैठे थे। तभी शादियाबाद थाने का तत्कालीन थानेदार इस्माइल खां घोड़े पर सवार होकर कुछ सिपाहियों के संग पहुंचा और वहां बैठे सभी लोगों पर रौब दिखाने लगा। वह कुछ क्रांतिकारियों को पकड़ कर ले जाने लगा। तभी रामा दादा अचानक खड़े हुए और ललकारते हुए थानेदार इस्माइल खां को घोड़े से खींचकर कई थप्पड़ जड़ दिए। किसी तरह थानेदार अपनी जान बचाकर वहां से भागा।
बताया जाता है कि स्व० रामा दादा एक क्रांतिकारी नेता के साथ-साथ स्वतंत्रता की लड़ाई में गरम दल के क्रांतिकारियों के समर्थक व सहयोगी थे। महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के समय 15 अगस्त 1942 को क्रांतिकारियों ने शादियाबाद थाना पर हमला करके आग लगा दी थी, जिसमें दो पुलिस कर्मियों को जिंदा जला दिया गया था। इसमें एक की मौत तथा एक घायल हो गया। थाना से ब्रिटिश झंडे को उतार कर फेंक दिया गया। यही नहीं, 18 अगस्त 1942 को नंदगंज में जो राशन से भरी मालगाड़ी लूटी गई थी, उसमें भी रामा दादा ने बढ़-चढ़कर अपने लोगों के साथ सामान लूटकर जला दिया था। इस घटना के बाद स्व० रामा दादा सहित कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जेल की सजा हुई थी। बताते हैं कि उस घटना के बाद 15 दिनों तक यह क्षेत्र अंग्रेजों से मुक्त रहा।
देश को आजादी मिलने के बाद स्व० रामा दादा को सरकार की तरफ से पेंशन और नैनीताल में जमीन देने के लिए कहा गया था, लेकिन दादा ने दोनों सुविधाएं लेने से इनकार कर दिया था। फिर 09 फरवरी 1965 को रामा दादा ने अंतिम सांस ली। स्व० सरजू पांडेय भी रामा दादा का बहुत ही सम्मान करते थे। वह हमेशा उन्हें “दादा-दादा” कहते नहीं थकते थे।
दादा की मृत्यु के बाद स्व० सरजू पांडेय ने स्व० रामा दादा की स्मृति में उनके जीवन पर एक सेनानी स्तंभ बनवाकर अपनी गाड़ी में रखकर ले आए और कटघरा गांव में उस स्तंभ को विधिवत स्थापित किया। जहां आज भी हर 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर क्षेत्र के लोग सेनानी स्तंभ पर तिरंगा झंडा फहराने तथा फूल-माला चढ़ाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
ऐसे सच्चे देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी और वीर सपूत को क्षेत्र की जनता आज भी उनकी वीरगाथा को याद कर गर्व महसूस करती है। उस क्षेत्र का जनमानस बार-बार सरकार से मांग कर रहा है कि ऐसे देशभक्त व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की याद में लगे ‘सेनानी स्तंभ’ स्थल का सुंदरीकरण किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी भी उन्हें याद करती रहे। यही दादा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।