वाराणसी
जीत का अंतर घटा तब पता चला कि नौकरशाही बेलगाम है

रिपोर्ट -राजेश राय
बीजेपी पार्षदों का विरोध-प्रदर्शन एक अभूतपूर्व घटना
वाराणसी। मंगलवार को नगर निगम में जो कुछ हुआ उसे अनिपेक्षित तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन अभूतपूर्व जरुर कहा जा सकता है। आमतौर पर विपक्ष के पार्षद विधायक या सांसद अधिकारियों के ख़िलाफ़ लामबंद होते हैं। अपनी आवाज मुखर करते हैं। लेकिन बनारस में तो उल्टी गंगा बह रही है।
नगर निगम के बीजेपी पार्षदों ने अपनी ही सरकार द्वारा नियुक्त नगर आयुक्त के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें लोकसभा चुनाव परिणामों के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हुए कह दिया कि अधिकारी जनता की नहीं सुनते।वाराणसी में प्रधानमंत्री की जीत का अंतर कम होने और मत प्रतिशत घटने के करणों की पड़ताल में यह महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया था कि शहर की जनता परेशान है।
इसका प्रमुख कारण अतिक्रमण और यातायात की समस्या है। शहर का हर वर्ग चाहे वह व्यापारी हो नौकरी पेशा हो छात्र हो या फिर युवा हो सब यातायात दुर्व्यवस्था से परेशान है। इसकी प्रमुख वजह है बनारस में लगातार अक्षम अधिकारियों की नियुक्ति। बावजूद इसके कि केंद्र और राज्य सरकार ने शहर को सुधारने के लिए हज़ारों करोड़ रुपये भेजे स्थिति जस की तस है।
पिछले दिनों अधिकारियों के साथ कई जनप्रतिनिधियों ने क्योटो सहित विदेश के अन्य शहरों की यात्राएं की लेकिन ये यात्राएं पिकनिक से ज़्यादा कुछ नहीं थी। जनता के टैक्स के पैसे से मौजमस्ती करते रहे और यहाँ जनता मुसीबतों के बोझ तले पिसती रही। जब बर्दाश्त की हद पार हो गई तब चुनाव में अपनी नाराज़गी का इज़हार किया।
दूसरी तरफ़ सत्तानशीं लोग जनता की नब्ज टटोलने में विफल रहे। वे काशी विश्वनाथ धाम को सबसे बड़ी उपलब्धि मान चादर तान सोते रहे। इस बात को भूल गए कि धाम बनने से पर्यटक ज़रूर बढ़े लेकिन इसका फ़ायदा एक ख़ास सेक्टर को ही हुआ। जब पर्यटकों का बोझ बढ़ा तो शहर की व्यवस्था छिन्नभिन्न ही गई। ख़ास तौर से पुरानी काशी के बाशिंदों और व्यापार पर बुरा असर पड़ा। शहर के सारे परम्परागत व्यापार चाहे वह वस्त्र उद्योग हो किराना मंडी हो या फिर सर्राफ़ा मंडी सभी पुरानी काशी जिसे पक्के महाल भी कहा जाता है में बसे हैं। धाम बनने के बाद आये दिन वीआईपी आवागमन और तीज त्योहारों के चलते पुलिस द्वारा रास्ता बंद करने से व्यापार चौपट हो गया।
इसके अलावा काशी की पहचान गंगा, वरुणा और अस्सी नदी की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी की तमाम फटकार के बाद भी इन नदियों की दशा नहीं सुधरी। इसके लिए कहीं न कहीं राजनीतिक दख़लंदाज़ी ज़िम्मेदार है। वरुणा की ग्रीन बेल्ट में लगभग 8 सौ अवैध निर्माण चिह्नित किए गए हैं। यही हाल अस्सी नदी का है जो सिमट कर नाला बन गई है। लेकिन अतिक्रमण हटने का नाम नहीं ले रहा। जिसने हिम्मत जुटायी उसका तबादला हो गया। विकास प्राधिकरण के तत्कालीन वीसी पुलकित खरे का उदाहरण सामने है।
सवाल है जब समस्याओं के लिए कहीं न कहीं जनप्रतिनिधि ख़ुद ज़िम्मेदार हैं फिर उसका ठीकरा दूसरे के सिर क्यों फोड़ रहे ? जब चुनाव परिणाम आया है तो सबकी तंद्रा टूट रही है।राज्य स्तर पर भी बीजेपी की चुनावी समीक्षा में विपरीत परिणामों का ठीकरा बेलगाम नौकरशाही पर फोड़ा जा रहा है। सवाल है सत्ता, आपकी सरकार आपकी फिर नौकरशाही बेलगाम कैसे हुई ? इन्हें किसका प्रश्रय प्राप्त है जो जनप्रतिनिधियों की नहीं सुनते।जिस दिन इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ लेंगे समस्या अपने आप दूर हो जाएगी।