गाजीपुर
चांद से तय होता है इस्लामिक जीवन का हर कदम

बहरियाबाद (गाजीपुर)। इस्लाम धर्म में चांद केवल एक खगोलीय पिंड नहीं, बल्कि धार्मिक जीवन का मार्गदर्शक है। यह हिजरी यानी इस्लामी कैलेंडर का आधार है, जिसके अनुसार तमाम पर्व, उपवास और इबादतें तय होती हैं। इस्लामी समय-गणना पूरी तरह चंद्रचक्र पर आधारित है, जिससे यह कैलेंडर सौर आधारित कैलेंडरों से भिन्न होता है।
हर नया इस्लामी महीना चांद के दीदार से शुरू होता है। इसी कारण रमज़ान, ईद-उल-फितर, ईद-उल-अजहा, मुहर्रम, शब-ए-बारात और शब-ए-क़द्र जैसे प्रमुख अवसर चांद के अनुसार ही मनाए जाते हैं। रमज़ान की शुरुआत भी नए चांद के दिखने से होती है, और ईद का दिन भी चांद के दीदार से तय होता है। इसी तरह मुहर्रम से इस्लामी नववर्ष आरंभ होता है, जो नए चांद की मौजूदगी पर निर्भर करता है।
शब-ए-बारात और शब-ए-क़द्र जैसी रातें भी हिजरी महीनों के विशेष दिनों पर आती हैं, जो चांद की गणना से ही मानी जाती हैं। हालांकि, चांद और तारे को पूजनीय नहीं माना गया है, बल्कि इन्हें अल्लाह की बनाई कायनात की निशानी और गणना के साधन के रूप में देखा जाता है। यही वजह है कि कई मुस्लिम देशों के झंडों में चांद और सितारे दिखाई देते हैं, पर ये धार्मिक चिन्ह नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रतीक हैं।
दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चांद के दिखने का समय अलग-अलग हो सकता है। इसी कारण रमज़ान या ईद जैसे पर्व कभी-कभी एक दिन के अंतर से मनाए जाते हैं। इस विविधता के बावजूद, चांद सभी मुसलमानों के लिए एक साझा दिशा-सूचक है, जो उन्हें उनके इबादत के वक़्त और त्योहारों के वक्त का एहसास कराता है।
इस्लाम में चांद न केवल आस्था की कसौटी है, बल्कि अनुशासित जीवन के समय-बोध का माध्यम भी है। यह बताता है कि धर्म, खगोल और जीवनशैली किस तरह गहराई से जुड़े होते हैं।