धर्म-कर्म
चतुर्थ दिवसीय छठ महापर्व नहाय खाये के साथ 17 नवंबर से
रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्लपक्ष षष्ठी तिथि पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ पूजा कहा जाता है।
यह हिंदूओं का प्रमुख त्यौहार है।
क्षेत्रीय स्तर पर बिहार,उत्तर प्रदेश, झारखंड, में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है।
छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का महापर्व है।
मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है।
यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में।
चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है।
स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं।
उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया की चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।
छठ पूजा करने या उपवास रखने के सबके अपने अपने कारण होते हैं लेकिन मुख्य रूप से छठ पूजा सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिये की जाती है। सूर्य देव की कृपा से सेहत अच्छी रहती है।
सूर्य देव की कृपा से घर में धन धान्य के भंडार भरे रहते हैं।
छठ माई संतान प्रदान करती हैं।
सूर्य सी श्रेष्ठ संतान के लिये भी यह उपवास रखा जाता है।
अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये भी इस व्रत को रखा जाता है।
कौन हैं देवी षष्ठी और कैसे हुई उत्पत्ति
छठ देवी को सूर्य देव की बहन बताया गया है।
लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं।
देवसेना अपने परिचय में कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं ।
यही कारण है कि मुझे षष्ठी कहा जाता है। देवी कहती हैं।
यदि आप संतान प्राप्ति की कामना करते हैं तो मेरी विधिवत पूजा करें।
यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को करने का विधान बताया गया है।
पौराणिक ग्रंथों में इसे रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या आने के पश्चात माता सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करने से भी जोड़ा जाता है,।
महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना से पुत्र की प्राप्ति से भी इसे जोड़ा जाता है।
सूर्यदेव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जिन्हें अविवाहित कुंती ने जन्म देने के बाद नदी में प्रवाहित कर दिया था, वह भी सूर्यदेव के उपासक थे।
वे घंटों जल में रहकर सूर्य की पूजा करते। मान्यता है कि कर्ण पर सूर्य की असीम कृपा हमेशा बनी रही।
इसी कारण लोग सूर्यदेव की कृपा पाने के लिये भी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करते हैं।
छठ पूजा का पर्व चार दिनों तक चलता है –
17 नवंबर शुक्रवार छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय – छठ पूजा का त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ प्रारंभ होती है।
मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं।
और शाकाहारी भोजन लेते हैं।
व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।
18 नवंबर शनिवार छठ पूजा का दूसरा दिन खरना – कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है, व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं।
इसे खरना कहा जाता है।
इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है।
शाम को चावल व गुड़ से खीर बनाकर खाया जाता है।
नमक व चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी खाई प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है।
19 नवंबर रविवार षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है।
इसमें ठेकुआ विशेष होता है।
कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहा जाता है।
चावल के लड्डू भी बनाये जाते हैं।
प्रसाद व फल लेकर बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं।
टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं।
स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है।
20 नवंबर सोमवार अगले दिन यानि सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा कर छठ पूजा संपन्न की जाती है।
उसके बाद पारण किया जाता है।
17 नवंबर शुक्रवार नहा-खाय।
18 नवंबर शनिवार खरना।
19 नवंबर रविवार छठ पूजा के दिन सूर्यास्त अर्घ्य दान – शाम- 5:22 के पहले।
20 नवंबर सोमवार छठ पूजा के दिन सूर्योदय अर्घ्य दान – सुबह- 6:39 के बाद।