गोरखपुर
गीडा प्रशासन की कार्रवाई से उजड़ गया आशियाना, 69 परिवार खुले आसमान तले जीने को मजबूर

अब केवल ‘बाबा जी’ से उम्मीद*
गोरखपुर। दक्षिणांचल के नरकटहा मौजा स्थित बाबा गोरक्षनाथ न्यू कॉलोनी में बीते दो वर्षों से 69 परिवार अपनी उजड़ी हुई जिंदगी को फिर से बसाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। गीडा प्रशासन द्वारा आवासीय भूखंडों पर लगाई गई रोक और उसके बाद चलाए गए बुलडोजर ने इन गरीब परिवारों के अरमानों को मलबे में बदल दिया। कभी अपने सपनों का घर बसाने वाले इन लोगों के आंखों में अब केवल बेबसी, आंसू और उम्मीद की हल्की सी किरण बाकी रह गई है।
इन परिवारों का दर्द बयान करना आसान नहीं। जून 2023 की तपती दोपहर थी, जब गीडा प्रशासन के बुलडोजर ने अचानक धावा बोल दिया। देखते ही देखते मेहनत की कमाई से बने छोटे-छोटे घर धराशायी हो गए। उस दिन की जलती धूप और ढहते दीवारों के बीच बच्चों की चीखें, महिलाओं की सिसकियां और पुरुषों की बेबसी आज भी वहां की मिट्टी में गूंजती है
धूप में दिन, खुले आसमान तले रातें” – आशा देवी की कहानी
वहीं मौजूद एक महिला आशा देवी बताती हैं — “मेरे पति मजदूरी करते हैं, रोज 400 रुपये कमाते हैं। हमने बच्चों के भविष्य के लिए रिश्तेदारों से कर्ज लेकर, बैंक से ऋण लेकर एक छोटा सा घर बनाया था। तीन कमरे का मकान बनवाया, ताकि अपने बच्चों को बेहतर जीवन दे सकें। लेकिन गीडा प्रशासन ने एक झटके में सब तोड़ डाला। अब 5000 रुपये किराए के मकान में रहना पड़ता है, और खाने तक के लाले पड़ गए हैं।
आशा देवी की आंखों से बहते आंसू उस समय की पीड़ा बयां करते हैं, जब उन्होंने कहा — “धूप में दिन गुजरे, रातें खुले आसमान तले बीतीं। किसी ने पूछा तक नहीं कि छोटे बच्चों को कैसे संभाल रहे हैं।
देश की सेवा करने वाले भी हुए बेसहारा
वहीं, बीएसएफ से सेवानिवृत्त जवान रामकरण की पीड़ा शब्दों में नहीं ढलती। उन्होंने बताया — “मैंने देश की सेवा की। रिटायरमेंट के बाद जो कुछ मिला, उसी से घर बनाया। तीन साल हो गए, गीडा प्रशासन के चक्कर काटते-काटते थक गया हूं। पूछो तो यही कहते हैं कि नक्शा पास नहीं था, जबकि हमने पूरा टैक्स दिया था, रजिस्ट्री कराई थी। बस अब भगवान और बाबा जी ही सहारा हैं।
रामकरण की आंखों में वो असहायता है, जो उस इंसान के भीतर होती है जिसने जिंदगीभर कानून का पालन किया, और अब खुद अन्याय का शिकार हो गया।
हम गरीब हैं, लेकिन अपराधी नहीं” – रवि जायसवाल
वहां मौजूद रवि जायसवाल ने बताया — “हमने जमीन सरकार की तय प्रक्रिया के अनुसार खरीदी थी। 2017-18 में रजिस्ट्री कराई, टैक्स भरा। तब किसी ने नहीं कहा कि ये जमीन विवादित है। अचानक 2023 में गीडा प्रशासन ने रोक लगाकर हमारे मकानों को तोड़ दिया। हमारे पास कोई सरकारी नौकरी नहीं, हम छोटे मजदूर लोग हैं। बच्चों के भविष्य के लिए जो सपना देखा था, वो बिखर गया।”
समानता कहां है?” – किसानों की जमीन छोड़, गरीबों पर कार्रवाई
रवि जायसवाल और अन्य ग्रामीणों ने प्रशासन के दोहरे रवैये पर सवाल उठाया। उन्होंने बताया कि सहजूपार सिमर गांव में गीडा क्षेत्र से सटी कृषि योग्य जमीन को प्रशासन ने किसानों के अनुरोध पर छोड़ दिया, लेकिन गरीबों की बसी हुई कॉलोनी को नहीं बख्शा।
“हमारे प्लॉट गीडा के किसी विकास कार्य में बाधक नहीं हैं। हम अलग-अलग स्थानों पर छोटे टुकड़ों में बसे हैं। फिर भी हमें उजाड़ दिया गया। आखिर यह न्याय है या अन्याय?” – ग्रामीणों ने सवाल किया।
69 परिवारों की जिंदगी राम भरोसे
बाबा गोरक्षनाथ न्यू कॉलोनी में आज 69 परिवार बेसहारा होकर जी रहे हैं। न रहने का ठिकाना, न रोजी-रोटी की स्थिरता। कोई रिश्तेदार के यहां रह रहा है, तो कोई किराए के छोटे कमरे में किसी तरह बच्चों को पढ़ा रहा है।
वहां मौजूद रामसुनील कुमार, शनि कुमार, रवि कुमार, सतेन्द्र सिंह- एडवोकेट सन्तोष सिंह, अरुण कुमार मिश्र, आशा देवी, गुंजा सिंह जैसे लोगों ने रो-रोकर अपनी आपबीती सुनाई।
संतोष सिंह ने कहा — “हमने अपनी पूरी जिंदगी की कमाई इस जमीन पर लगाई। बच्चों के लिए, भविष्य के लिए। लेकिन अब लगता है जैसे किसी ने हमसे जीने का हक भी छीन लिया।
मुख्यमंत्री से मिले, मिला आश्वासन पर असर नहीं
पीड़ित परिवारों का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री बाबा योगी आदित्यनाथ के जनता दर्शन कार्यक्रम में पहुंचा था। वहां मुख्यमंत्री जी ने पीड़ा सुनी और जांच का आश्वासन भी दिया। लेकिन आज तक जमीनी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
पीड़ितों का कहना है कि “अगर बाबा जी की नजर नहीं पड़ी तो हम लोग आत्मघाती कदम उठाने पर मजबूर हो जाएंगे।” यह बयान उस दर्द को दर्शाता है, जो अब उम्मीद में भी बदलता जा रहा है।
प्रशासन से जवाब की उम्मीद
गीडा प्रशासन का कहना है कि इन भूखंडों का नक्शा पास नहीं था, इसलिए कार्रवाई की गई। लेकिन पीड़ितों के अनुसार, उस समय न कोई सरकारी रोक थी न कोई सूचना। सवाल उठता है — अगर 2017-18 में रजिस्ट्री हुई थी और स्टाम्प शुल्क सरकार को गया था, तो फिर उसे मान्यता क्यों नहीं दी गई?
“हम बस एक ठिकाना चाहते हैं”
आज इन परिवारों की सबसे बड़ी मांग यही है — “हमें हमारा हक मिल जाए। जहां बसे हैं, उसे नियमित किया जाए। हम बस अपने बच्चों के सिर पर छत चाहते हैं।”
उनके घर टूटे जरूर हैं, लेकिन उम्मीद अभी जिंदा है। उन्हें भरोसा है कि एक दिन न्याय जरूर मिलेगा, और वह दिन शायद वही होगा जब मुख्यमंत्री जी की नजर दोबारा इस उजड़े गांव पर पड़ेगी।
गीडा प्रशासन की कार्रवाई ने केवल मकान नहीं तोड़े, बल्कि 69 परिवारों के सपनों और विश्वास को भी चकनाचूर कर दिया। अब यह मामला सिर्फ जमीन का नहीं रहा, बल्कि गरीबों की हक और सम्मान की लड़ाई बन गया है। इन लोगों की आंखों में आज भी एक ही उम्मीद है — “बाबा जी देख लीजिए, हमारा भी घर लौट आए।”