वाराणसी
गणेश चतुर्थी महोत्सव, जानें शुभ मुहूर्त
रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
हिंदू पञ्चांग के अनुसार हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय देवता का स्थान दिया गया है और किसी भी शुभ कार्य से पहले गणपति का पूजन करना अनिवार्य माना गया है। ऐसे में गणेश चतुर्थी का महत्व अधिक बढ़ जाता है क्योंकि यह दिन गणपति की अराधना के लिए बेहद ही खास होता है। गणेश चतुर्थी का महोत्सव एक या दो नहीं, बल्कि 10 दिनों तक चलता है और इस दौरान लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार घरों में गणेश जी की स्थापना करते हैं फिर 10वें दिन उनका विसर्जन किया जाता है।
उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केंद्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योर्तिविद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि वस्तुत:इस वर्ष 19 सितम्बर भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि मंगलवार से प्रारंभ हो रहा है गणेश महोत्सव और गणपति को घर लाने का शुभ मुहूर्त वस्तुत: गणेश चतुर्थी का त्योहार प्रत्येक भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है और इस दिन भक्तजन अपने घरों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं। पंचांग के अनुसार इस साल यह त्योहार 19 सितंबर को मनाया जाएगा और 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव का समापन 28 सितंबर पर होगा। इसका समापन भी बेहद ही धूमधाम से होता है और इस दौरान घर में स्थापित किए गए गणेश जी विधि-विधान से विसर्जन किया जाता है और फिर अगले वर्ष सुख-समृद्धि के साथ आने की कामना करते हैं।
हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी का पर्व बहुत ही खास माना गया है क्योंकि प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की पूजा के बाद ही किसी शुभ कार्य की शुरुआत की जाती है। वैसे तो इस पर्व को पूरे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा और कर्नाटक में इसकी अलग ही धूम देखने को मिलती है।
गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की जाती है और यह कार्य यदि शुभ मुहूर्त में किया जाए तो अधिक फलदायी होता है। गणेश चतुर्थी के दिन मूर्ति स्थापित करने का शुभ मुहूर्त सुबह से लेकर दोपहर 1 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
सर्वप्रथम चौकी पर लाल कपडा बिछा कर गणेश जी की मूर्ति स्थापित करे
श्रद्धा भक्ति के साथ घी का दीपक लगाएं। दीपक रोली/कुंकु, अक्षत, पुष्प , से पूजन करें।
अगरबत्ती/धूपबत्ती जलाये
जल भरा हुआ कलश स्थापित करे और कलश का धूप ,दीप, रोली/कुंकु, अक्षत, पुष्प , से पूजन करें।
अब गणेश जी का ध्यान और हाथ मैं अक्षत पुष्प लेकर निम्लिखित मंत्र बोलते हुए गणेश जी का आवाहन करे
ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः.
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः.
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा.
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥
अक्षत और पुष्प गणेश जी को समर्पित कर दे।
अब गणेशजी को जल, कच्चे दूध और पंचामृत से स्नान कराये (मिटटी की मूर्ति हो तो सुपारी को स्नान कराये )
गणेशजी को नवीन वस्त्र और आभूषण अर्पित करे
रोली/कुंकु, अक्षत, सिंदूर, इत्र ,दूर्वां , पुष्प और माला अर्पित करे।
धुप और दीप दिखाए
गणेश जी को मोदक सर्वाधिक प्रिय हैं। अतः मोदक, मिठाइयाँ, गुड़ एवं ऋतुफल जैसे- केला, चीकू आदि का नैवेद्य अर्पित करे।
श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करे
अंत मैं गणेश जी की आरती करे
आरती के बाद १ परिक्रमा करे और पुष्पांजलि दे
गणपति पूजा के बाद अज्ञानतावश पूजा में कुछ कमी रह जाने या गलतियों के लिए भगवान् गणेश के सामने हाथ जोड़कर निम्नलिखित मंत्र का जप करते हुए क्षमा याचना करे।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं l यत पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव l
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं l पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं l
