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गोरखपुर

खजनी में श्रीमद्भागवत कथा का दिव्य आयोजन

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भक्ति, ज्ञान और मोक्ष का दिखा अद्भुत संगम

गोरखपुर। जनपद के खजनी क्षेत्र में, प्रसिद्ध पोस्ट ऑफिस गली खुटभार में इस समय दिव्यता और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है। यहाँ महेश्वरी फर्नीचर खुटभार, खजनी की प्रोपराइटर स्वर्गीय सुभाष चन्द्र विश्वकर्मा की धर्मपत्नी श्रीमती शोभा देवी द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण कथा इन दिनों समूचे क्षेत्र को अध्यात्मिक आलोक से आलोकित कर रही है।

इस दिव्य कथा का शुभारंभ 8 अक्टूबर 2025 को वैदिक मंत्रोच्चार और कलश यात्रा के साथ हुआ। कथा का संचालन प्रसिद्ध कथा व्यास पंडित अरुणेश मिश्र (मो. 9956117425) के श्रीमुख से हो रहा है। कथा के प्रारंभ से ही श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा — मानो गंगाजल की निर्मल धारा प्रवाहित हो रही हो।

पहला दिन – भागवत कथा का आरंभ, कलश यात्रा का दिव्य दृश्य

कथा के प्रथम दिन सुबह भव्य कलश यात्रा निकाली गई। स्त्रियाँ सिर पर कलश लिए मंगल गीत गा रही थीं, तो पुरुष भजन और वंदनाओं में लीन थे। कथा व्यास पंडित अरुणेश मिश्र ने प्रथम दिन श्रीमद्भागवत महापुराण की महिमा बताते हुए कहा, “भागवत कथा वह दिव्य ग्रंथ है, जो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के हृदय से प्रकट हुआ है। यह कथा केवल सुनने की वस्तु नहीं, बल्कि आत्मा को प्रभु में विलीन करने का माध्यम है।”

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श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे। कथा स्थल पर सुंदर पुष्प सज्जा, झूमर, रौशनी और भक्ति संगीत की गूंज ने वातावरण को स्वर्गिक बना दिया।

दूसरा दिन – सृष्टि का रहस्य और भक्तों का भाव जागरण

दूसरे दिन कथा व्यास ने सृष्टि के आरंभ, ब्रह्मा की उत्पत्ति, और नारद के प्रश्नों के माध्यम से सृष्टि के रहस्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जब जीवन में ‘माया’ का आवरण हटता है, तभी भगवान की सृष्टि का सत्य ज्ञात होता है।
संगीतमय भजनों और वाद्य यंत्रों की लय पर भक्त झूम उठे। स्त्रियों ने आरती की थालियों से पूरे मंडप को प्रकाशित कर दिया।

तीसरा दिन – कपिल देव संवाद और भक्ति का महत्व

तीसरे दिन कपिल देव और माता देवहूति के संवाद का वर्णन हुआ। कथा व्यास ने कहा,“भक्ति ही वह पुल है, जो जीव को परमात्मा से जोड़ देता है। जब अहंकार टूटता है, तभी भक्ति का सच्चा आनंद मिलता है।”

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भक्तजन आँखों में आँसू और हृदय में शांति का अनुभव कर रहे थे। कथा स्थल पर हर तरफ ‘हरि बोल’, ‘राधे कृष्ण’ की गूंज थी।

चौथा दिन – प्रह्लाद चरित्र और नृसिंह अवतार की लीला

कथा के चौथे दिन कथा व्यास ने प्रह्लाद चरित्र का भावपूर्ण वर्णन किया। जैसे ही पंडित अरुणेश मिश्र ने नृसिंह अवतार की लीला सुनाई, वैसे ही वातावरण “नृसिंह भगवान की जय” के जयकारों से गूंज उठा।

इस प्रसंग ने यह सिखाया कि सच्चे भक्त के लिए भगवान स्वयं प्रकट होते हैं। पंडित जी ने कहा, “जहाँ श्रद्धा है, वहाँ भगवान हैं और जहाँ अहंकार है, वहाँ विनाश।”

पाँचवां दिन – गोविंद लीला और श्रीकृष्ण जन्मोत्सव

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पाँचवे दिन का दृश्य अलौकिक था। कथा व्यास ने जब श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का वर्णन किया, तो पूरा पंडाल झूम उठा। शंख, मृदंग और घंटों की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान हो उठा।

भक्तों ने “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की” गाते हुए झूमकर नाच किया। बाल गोपाल की झांकी सजाई गई और भक्तों ने भगवान को दूध-माखन का भोग अर्पित किया।
श्रीमती शोभा देवी एवं उनके परिवार ने श्रद्धापूर्वक आरती की।

छठा दिन – सुदामा चरित्र और रुक्मिणी विवाह का प्रसंग

छठे दिन कथा व्यास ने सुदामा चरित्र का वर्णन किया। जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा का स्वागत किया, तो व्यास जी की वाणी भावविभोर हो उठी। उन्होंने कहा,“जब सच्चा प्रेम होता है, तब भगवान स्वयं द्वार खोलते हैं। मित्रता, विनम्रता और त्याग ही भगवान की प्रिय भक्ति है।”

इसके बाद रुक्मिणी विवाह का वर्णन हुआ — पंडाल में जयमाल का दृश्य सजाया गया। भक्तों ने फूलों की वर्षा की, और कथा स्थल भक्ति और प्रेम से भर गया।

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पूर्णाहुति और महाप्रसाद  16 अक्टूबर को होगा समापन

कथा की पूर्णाहुति 16 अक्टूबर 2025, दिन गुरुवार को विधिवत संपन्न होगी। इस दिन हवन, आरती और महाप्रसाद का आयोजन किया जाएगा।

संपूर्ण विश्वकर्मा परिवार, दर्शन अभिलाषी परिवार, विपुल विश्वकर्मा एवं सभी मित्रगण भक्तिमय उत्सव की तैयारी में जुटे हैं। श्रद्धालुओं को सादर आमंत्रण है कि वे इस पावन प्रसंग में सम्मिलित होकर दिव्य प्रसाद का लाभ उठाएं।

कथा का भावनात्मक सार — जीवन का परम सत्य

*कथा व्यास पंडित अरुणेश मिश्र ने समापन प्रसंग में कहा, “श्रीमद्भागवत कथा केवल ग्रंथ नहीं, यह वह दर्पण है जिसमें आत्मा अपना वास्तविक स्वरूप देखती है। जब मनुष्य यह समझ लेता है कि सब कुछ उसी परमात्मा का अंश है, तब जीवन का भय समाप्त हो जाता है।

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कथा स्थल पर बैठे श्रोतागण निःशब्द थे, मानो समय थम गया हो। आँखों से आँसू बह रहे थे — यह आँसू आनंद और आत्मसाक्षात्कार के थे।

भक्ति की वह अलौकिक अनुभूति

रात होते-होते कथा स्थल दीपों से आलोकित हो गया। हर श्रद्धालु के चेहरे पर प्रभु नाम की आभा झलक रही थी। महिलाएँ भजन गा रही थीं, बच्चे ‘राधे-श्याम’ का जयघोष कर रहे थे। इस आयोजन ने पूरे क्षेत्र में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार कर दिया है।

इस दिव्य श्रीमद्भागवत कथा आयोजन ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि जहाँ कथा होती है, वहाँ स्वयं भगवान का निवास होता है। भक्ति, ज्ञान और प्रेम का यह संगम खुटभार, खजनी की इस पावन भूमि को आने वाले वर्षों तक याद रहेगा।

दर्शन अभिलाषी परिवार — विपुल विश्वकर्मा एवं विश्वकर्मा परिवार व मित्रगण पूर्णाहुति एवं महाप्रसाद : 16 अक्टूबर 2025, दिन गुरुवार

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