हेल्थ
क्षय रोग को नियंत्रित करने के लिए घर-घर चलाया जाएगा जागरूकता अभियान
वाराणसी। भारत में 1962 में राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीपी) शुरू किया गया, लेकिन 1993 में इसकी समीक्षा के बाद इसे प्रभावी नहीं पाया गया। इसके बाद 1997 में डॉट्स थिरेपी की शुरुआत की गई, जिसमें मरीजों को स्वास्थ्य कार्यकर्ता की देखरेख में दवा दी जाती है। टीबी एक गंभीर बीमारी है, जिससे हर साल लाखों लोगों की मौत होती है और भारत में 4.8 लाख लोगों की जान जाती है। भारत सरकार ने 2025 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा है, जिसके तहत वाराणसी में स्वास्थ्य विभाग 227 टीमों के माध्यम से घर-घर जाकर मरीजों की स्क्रीनिंग कर रहा है। जरूरत पड़ने पर उनकी जांच कराई जाएगी और टीबी पाए जाने पर 48 घंटे के भीतर इलाज शुरू किया जाएगा। राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम (एन.टी.ई.पी.) के तहत जनपद वाराणसी में 23 टीबी यूनिट और 57 माइक्रोस्कोपी सेंटर कार्यरत हैं। इसके अलावा, बीएचयू और रामनगर के नोडल डी.आर.टी.बी. सेंटर में एम.डी.आर. मरीजों का इलाज किया जा रहा है। बीएचयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में आई.आर.एल. लैब भी स्थापित है, जो एम.डी.आर. मरीजों की जांच और फॉलोअप के लिए काम कर रही है। टीबी उन्मूलन के इस मिशन में सभी टीबी रोगियों को शीघ्र और गुणवत्तापूर्ण निदान और उपचार की सुविधा प्रदान की जा रही है।