वाराणसी
काशी की संस्कृति को नया रूप देगा VDA, हर चौराहा बनेगा पहचान

वाराणसी की कला और संस्कृति को नई पहचान देने की दिशा में विकास प्राधिकरण एक खास पहल कर रहा है। शहर के प्रमुख चौराहों पर यहां की लोककला और जीवनशैली से जुड़ी कलाकृतियां यानी स्कल्पचर लगाए जा रहे हैं। इनमें लकड़ी के खिलौनों से लेकर हथकरघा पर काम करते बुनकरों की झलक शामिल है।
रामनगर की लस्सी, जो बनारस की खास पहचान मानी जाती है, अब एक स्कल्पचर के जरिए रामनगर चौराहे पर नजर आएगी, जिसमें एक व्यक्ति लस्सी फेटते हुए दिखेगा। वहीं, काशी के खोजवा इलाके में बनने वाले लकड़ी के खिलौनों को दर्शाते हुए आईपी विजया तिराहे पर एक लट्टू का स्कल्पचर लगाया जाएगा।
अंबेडकर चौराहे के पास शेर की मूर्ति, आजमगढ़ मार्ग पर नंदी बैल, रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में रुद्राक्ष, मंडुवाडीह चौराहे पर डमरू और त्रिशूल, जबकि सेंट्रल जेल मार्ग स्थित तिराहे पर हॉकी खिलाड़ी की मूर्ति लगाई जाएगी।सारनाथ, जो गौतम बुद्ध की तपोस्थली है, वहां पर धम चक्र, हिरण और बोधिवृक्ष से जुड़ी कलाकृतियां लगाई जाएंगी।
महिला जिला अस्पताल परिसर में मां और बच्चे की, संस्कृत विश्वविद्यालय में वाचन करते ऋषि, टीएफसी में बुनकर और निफ्ट परिसर में रेशम से जुड़ी कलाकृतियां स्थापित की जाएंगी।बरेका (बनारस रेल कारखाना) इन मूर्तियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
वहां कबाड़ से मेटल की कलाकृतियां बनाई जा रही हैं जो शहर की सुंदरता को और निखारेंगी।विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का कहना है कि वाराणसी में कला और संस्कृति की भरमार है, लेकिन लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती।
इसलिए यह स्कल्पचर न सिर्फ शहर की खूबसूरती बढ़ाएंगे, बल्कि यहां की पहचान भी मजबूत करेंगे। एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और शहर के प्रवेश द्वारों पर इन कलाकृतियों को लगाया जा रहा है ताकि पर्यटक शहर की खासियतों को बेहतर ढंग से समझ सकें।