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धर्म-कर्म

काशी का महामृत्युंजय मंदिर जहां काल भी आने से घबराता है

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चमत्कारी धनवंतरी कूप; जिसके आठ-घाट है और प्रत्येक घाट के जल का स्वाद है अलग-अलग

रिपोर्ट – श्रद्धा यादव

केवल काशी में ही है महामृत्युंजय मंदिर जहां देवों के देव महादेव भक्तों के दुख के साथ ही अकाल मृत्यु को भी दूर करते हैं। सर्व सिद्धि प्रदान करने वाले ‘महादेव’ भक्तों को मोक्ष का वरदान भी देते हैं।

मंदिर के महंत परिवार के पंडित किशन दीक्षित का कहना है कि, यह हजारों साल पुराना मंदिर है। देश में कहीं भी महामृत्युंजय का मंदिर नहीं है। इस महामृत्युंजय मंदिर में एक छोर में महामृत्युंजय शिवलिंग तथा दूसरे छोर पर महाकालेश्वर पुत्र के रूप में स्थित है। यहीं नागेश्वर महादेव है। इसी प्रांगण में महाकाली,अष्टांग भैरव का विग्रह भी है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित हनुमान जी का मंदिर प्राचीन पीपल के वृक्ष के नीचे स्थित है। इसी वृक्ष के नीचे शनिदेव का भी मंदिर है तथा मंदिर के विशाल प्रांगण में मार्कंडेय महादेव तथा कालोदक कूपेश्वर महादेव जो स्वयं धन्वंतरी कूप से स्वयं निकलकर मंदिर प्रांगण में विराजमान हुए थे।

पौराणिक मान्यताओ के अनुसार, धनवंतरी कूप की मौजूदगी मां गंगा के धरती पर अवतरण से भी प्राचीन है।भगवान धन्वंतरी ने यहां कई वर्षों तक तपस्या की और यहां से देवलोक जाते समय उन्होंने अपनी सारी औषधीय इस कुएं में डाल दी जिसके कारण इस कुएं का जल औषधि हो गया। इसके पीने मात्र से सभी असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। इस कुएं की विशेषता यह है कि इसमें आठ घाट है और प्रत्येक घाट के जल का स्वाद अलग-अलग है।

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