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मिर्ज़ापुर

उर्दू साहित्य के एक बड़े शायर थे ताबिश इकरामी : गणेश गम्भीर

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मिर्जापुर। उर्दू साहित्य के जाने-माने शायर ताबिश इकरामी को श्रद्धांजलि देने के लिए रविवार को इम्तियाज अहमद गुमनाम के तरकापुर स्थित आवास पर एक भावपूर्ण गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन में जिले के अनेक साहित्य प्रेमियों, शायरों और बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया और ताबिश साहब की शायरी के साथ-साथ उनके सरल, नेकदिल और मिलनसार व्यक्तित्व पर चर्चा की।

गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार गणेश गम्भीर ने की। उन्होंने ताबिश इकरामी को उर्दू का एक बड़ा नाम बताते हुए कहा कि वह प्रसिद्ध शायर हुरमतुल इकराम के शागिर्द थे और उर्दू शायरी की बारीकियों को समझने व सिखाने में उन्होंने अहम योगदान दिया। भोलानाथ कुशवाहा ने उन्हें एक सच्चा इंसान और बेहद मिलनसार शायर बताया। सैयद कासिम अली ने भावुक होते हुए कहा कि ताबिश इकरामी ने अदब और हुनर की शान बढ़ाई और उर्दू अदब में अपनी खास पहचान बनाई।

मुहिब मिर्जापुरी ने शेर के ज़रिए श्रद्धांजलि दी: “अहले सुखन की बज्म सजा कर चला गया, इल्मो अदब की समा जला कर चला गया।” वहीं अनवर असद, सेराज, शाहिद सहित कई शायरों ने भी उन्हें याद किया। दानिश जैदी ने बताया कि ताबिश इकरामी उनके पिता से मिलने आते थे और उनका स्नेहपूर्ण व्यवहार आज भी याद आता है।

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जनता साप्ताहिक के संपादक अता उल्लाह सिद्दीकी ने बताया कि उनकी गजलें हमेशा पाठकों की पसंद बनी रहती थीं। गुमनाम मिर्जापुरी ने साझा किया कि वे ताबिश साहब के घर अक्सर जाया करते थे और उनसे बहुत कुछ सीखा। आनंद केसरी ने बताया कि उनके घर आयोजित कवि गोष्ठियों में ताबिश साहब की उपस्थिति गोष्ठी को विशेष बना देती थी। शहजाद मिर्जापुरी ने कहा कि उन्होंने शायरी की पहली प्रेरणा ताबिश साहब से ही पाई।

इरफान कुरैशी ने उनकी एक गजल सुनाकर सभा को भावविभोर कर दिया। डॉ. रहमानी, नंदलाल सिंह चंचल, अश्क रज्जाकी, मा हुसैन अहमद आदि वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे और श्रद्धांजलि अर्पित की। गोष्ठी का संचालन वरिष्ठ शायर मुहिब मिर्जापुरी ने किया। कार्यक्रम का समापन दो मिनट के मौन और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना के साथ हुआ।

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