Connect with us

गाजीपुर

अमावस्या पर तर्पण से प्रसन्न होते हैं देवगण : हृदय नारायण दुबे

Published

on

भांवरकोल (गाजीपुर)। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का कालखंड पितृपक्ष कहलाता है। इस दौरान अपने पूर्वजों के स्मरण और तर्पण का विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष का समापन महालया अमावस्या या सर्वपितृ अमावस्या के दिन होता है।

इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर विशेष संयोग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग और शिववास योग के साथ-साथ इस दिन वर्ष का आख़िरी आंशिक सूर्यग्रहण भी लगेगा। हालांकि यह भारत में दृश्य नहीं होगा। हृदय नारायण दुबे ने बताया कि ब्रह्मपुराण के अनुसार मनुष्य को सर्वप्रथम अपने पितरों की पूजा करनी चाहिए। पूर्वजों की पूजा से देवगण प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद स्वरूप जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

यही कारण है कि भारतीय समाज में बड़ों का सम्मान और मृत्यु के बाद श्राद्ध करने की परंपरा रही है। उन्होंने बताया कि पितृपक्ष के दौरान पितृदेव स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर अपने प्रियजनों को आशीर्वाद देने आते हैं। इस अवसर पर तर्पण, पिंडदान और गंगास्नान का विशेष महत्व है। परंपरा है कि पितरों के निमित्त पकवान बनाकर अर्पित किए जाएँ। परिजनों की सेवा भाव से प्रसन्न होकर पितृदेव आशीर्वाद देकर पितृलोक को लौटते हैं।

हृदय नारायण दुबे ने कहा कि महालया अमावस्या के दिन पंचबलि की परंपरा भी है। इसमें गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए भोजन अलग निकालकर अर्पित किया जाता है। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख कर कुश, जौ, तिल, चावल और जल से संकल्प लेकर एक अथवा तीन ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। भोजन कराने से पूर्व उनके चरण धोने चाहिए, इस समय पत्नी का दाहिनी ओर रहना आवश्यक माना गया है। भोजन उपरांत सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा देकर आशीर्वाद लिया जाता है। पितरों को विदा करने के साथ ही अगले दिन से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ हो जाएगा और घर-घर में माता शक्ति की आराधना प्रारंभ होगी।

Copyright © 2024 Jaidesh News. Created By Hoodaa

You cannot copy content of this page