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गाजीपुर

किसान आंदोलन के जनक और संन्यासी क्रांतिकारी थे स्वामी सहजानंद सरस्वती

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गाजीपुर। जिले के दुल्लहपुर थाना क्षेत्र के देवा गांव में 22 फरवरी 1889 को महाशिवरात्रि के दिन जन्मे स्वामी सहजानंद सरस्वती भारतीय किसान आंदोलन के जनक और सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। भूमिहार ब्राह्मण परिवार में जन्मे नौरंग राय (बचपन का नाम) ने बचपन में ही अपनी मेधावी प्रतिभा का परिचय दिया और शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। लेकिन उनके मन में अध्यात्म और सामाजिक सुधार की गहरी ललक थी, जिसने उन्हें संन्यास की राह पर ला खड़ा किया।

स्वामी सहजानंद ने काशी में अद्वेतानंद जी से दीक्षा ग्रहण कर संन्यास धारण किया और सनातन धर्म की जड़ में जमी कुरीतियों के खिलाफ मोर्चा खोला। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया कि ब्राह्मणेतर जातियों को भी दंड धारण करने का अधिकार है। अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व और विद्वता से उन्होंने भूमिहार ब्राह्मण समाज में जागरूकता फैलाई और धार्मिक आडंबरों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

स्वतंत्रता संग्राम में भी उनकी भूमिका अहम रही। महात्मा गांधी के अनुरोध पर वे कांग्रेस में शामिल हुए और असहयोग आंदोलन को बिहार में नई गति दी। किसानों के अधिकारों के लिए उन्होंने संघर्ष किया, लेकिन कांग्रेस के भीतर पनप रही अवसरवादिता और सुविधाभोगी मानसिकता ने उन्हें निराश किया। जमींदारी प्रथा के खिलाफ उनके आंदोलनों ने उन्हें अंग्रेजों की नजरों में खतरनाक बना दिया, जिसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

स्वामी सहजानंद सरस्वती और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच गहरी वैचारिक समानता थी। दोनों ने मिलकर कई ब्रिटिश-विरोधी रैलियों का नेतृत्व किया। अंग्रेज सरकार ने उनके बढ़ते प्रभाव को देखते हुए 28 अप्रैल को उन्हें गिरफ्तार किया, जिसे बाद में “ऑल इंडिया स्वामी सहजानंद डे” के रूप में घोषित किया गया।

किसानों की दशा सुधारने और समाज में एकता लाने के लिए उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें “कर्म-कलाप” विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 26 जून 1950 को मुजफ्फरपुर में उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन उनकी विचारधारा और संघर्ष की विरासत आज भी जीवंत है।

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