वाराणसी
Dalmandi News : बुलडोज़र के खिलाफ मैदान में उतरे राघवेंद्र चौबे, राज्यपाल से मिलने की तैयारी

राघवेंद्र चौबे का सवाल– क्यों कुचली जा रही दालमंडी की पहचान ?
वाराणसी। काशी में दालमंडी पर हो रही रिडेवलपमेंट कार्रवाई के खिलाफ वाराणसी कांग्रेस महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने निर्णायक हस्तक्षेप करते हुए एक बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने दालमंडी की वास्तविक स्थिति और जनभावनाओं को शासन-प्रशासन तक पहुँचाने के लिए 12 सदस्यीय सर्वेक्षण दल का गठन किया है, जो स्थानीय व्यापारियों, धार्मिक प्रतिनिधियों, महिला उद्यमियों और आम नागरिकों से संवाद कर रहा है। इस पहल का उद्देश्य प्रशासन की एकतरफा कार्रवाई पर वस्तुपरक समीक्षा तैयार कर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपना है।
राघवेंद्र चौबे ने कहा कि, काशी जहाँ गंगा बहती है, शिव का वास है और हर गली एक परंपरा की कथा कहती है—आज वहीं, दालमंडी जैसे ऐतिहासिक व्यापारिक केंद्र पर ‘विकास’ के नाम पर बुलडोज़र चल रहे हैं। यह वह दालमंडी है जहाँ बनारसी सिल्क, ज़री, इत्र, मसाले और जड़ाऊ गहनों की महक और चमक ने काशी को दुनिया भर में पहचान दिलाई। लेकिन आज वही क्षेत्र प्रशासनिक ‘रिडेवलपमेंट’ की दौड़ में धार्मिक स्थलों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों और जनजीवन के विनाश का साक्षी बन रहा है।
राघवेंद्र चौबे द्वारा गठित सर्वेक्षण टीम ने क्षेत्र की धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत—मंदिर, मस्जिद, इमामबाड़ों की स्थिति का निष्पक्ष आंकलन किया है और यह भी देखा है कि प्रशासनिक तोड़फोड़ और नोटिस प्रक्रिया कानूनी कसौटियों पर खरी उतरती है या नहीं। टीम का कार्य यही नहीं रुका; स्मार्ट सिटी योजना की आड़ में चल रहे ‘अघोषित युद्ध’ की जमीनी हकीकत को लिखित रूप में समेट कर महामहिम राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल को सौंपने हेतु विस्तृत ज्ञापन तैयार किया गया है।
राघवेंद्र चौबे ने आगे कहा है कि यह रिपोर्ट केवल एक औपचारिक विरोध नहीं बल्कि जनता की सच्ची आवाज़ है, जिसे ‘विकास’ के नाम पर कुचला जा रहा है। उन्होंने यह भी मांग की है कि दालमंडी को ‘हेरिटेज मार्केट’ का दर्जा दिया जाए, ताकि इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गरिमा को संरक्षित किया जा सके।
महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने प्रतिनिधिमंडल सहित राज्यपाल से मिलने के लिए समय भी मांगा है। उनका कहना है कि ज्ञापन से अधिक ज़रूरी है दालमंडी के दर्द को प्रत्यक्ष रूप से राज्य की संवैधानिक प्रमुख के समक्ष रखना।
राघवेंद्र चौबे का स्पष्ट संदेश है—“काशी की आत्मा पर हो रहे इस आघात की सच्चाई को सिर्फ कागज़ों पर नहीं, आँखों में आँखें डालकर सुनाना होगा। यह हमारी जिम्मेदारी है कि पूर्वांचल की आवाज़, संविधान के स्तंभों तक पहुँचे।”
दालमंडी आज सिर्फ एक इलाका नहीं, काशी की सांस्कृतिक और व्यापारिक अस्मिता का प्रतीक है। प्रशासनिक बुलडोज़र अगर यूं ही चलता रहा, तो केवल भवन ही नहीं—संस्कृति, धर्म और इंसानियत भी मलबे में दब जाएगी।