वाराणसी
महिला मजदूरों की हुंकार: रोजगार, पेंशन और बराबरी के अधिकार की मांग
वाराणसी के मिर्जामुराद क्षेत्र के प्रतापपुर गांव में शुक्रवार को महिला मजदूर अधिकार सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का संचालन मनरेगा मजदूर यूनियन और समता किशोरी युवा मंच ने किया, जिसमें विभिन्न गांवों से आई हजारों महिला मजदूरों ने भाग लिया।
इस सम्मेलन के दौरान पिपल्स वर्कर्स कोलिएशन की देशव्यापी श्रमिक सम्मान यात्रा भी पहुंची, जिसका पारंपरिक तिलक लगाकर भव्य स्वागत किया गया। यात्रा के संयोजक प्रकाश कुमार ने बताया कि यह यात्रा पिछले 25 दिनों से चल रही है, जिसकी शुरुआत दीघा से हुई थी और इसका समापन दिल्ली में होगा, जहां मजदूरों की मांगें सरकार के समक्ष रखी जाएंगी।
सम्मेलन में महिलाओं ने सरकार से मांग की कि मनरेगा के तहत साल में 200 दिन का रोजगार मिले, मजदूरी दर 800 रुपये प्रतिदिन हो, सभी को स्वास्थ्य कार्ड मिले और राशन कार्ड के जरिए हर महीने 15 किलो राशन के साथ खाद्य तेल, गैस सिलेंडर और सूखी सब्जियां उपलब्ध कराई जाएं। इसके अलावा, बुजुर्ग महिला मजदूरों के लिए पेंशन योजना लागू करने की भी मांग उठाई गई।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद मूर्ति ने कहा कि महिलाओं की मेहनत और संघर्ष की बदौलत ही आज हम इतने बड़े स्तर पर एकजुट हुए हैं। अब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता।
मनरेगा मजदूर यूनियन के संयोजक सुरेश राठौर ने कहा कि महिलाओं को देवी के रूप में पूजा तो जाता है, लेकिन समाज में उन्हें बराबरी का हक नहीं मिलता। अब वक्त आ गया है कि महिलाएं अपने हक की लड़ाई खुद लड़ें और अपने वोट से सरकार को मजबूर करें कि वे उनके अधिकारों को सुनिश्चित करें।
सामाजिक कार्यकर्ता जागृति राही ने कहा कि अब महिलाएं पीछे रहने वाली नहीं हैं। समाज में बराबरी का हक उन्हें आबादी के अनुसार मिलना ही चाहिए। इस सम्मेलन का संचालन रेनू पटेल और धन्यवाद ज्ञापन सपना ने किया।
सम्मेलन में डॉ. महेंद्र सिंह पटेल, योगिराज, मुकेश प्रधान, महेंद्र, राम सिंह, ओमप्रकाश, बृजेश यादव, अनिल कुमार, प्रीति, राज शेखर, राजेश उपाध्याय, प्रेम, पूजा, मुश्तफा, सरोज, प्रियंका, प्रतिभा, प्रिया, शीला, रीता, मंगरा, राम दुलारी, सरोजा, आरती, सुजाता, साधना, सुदामा, मीरा, सपना, पूजा देवी, संगीता, नगीना, सुशीला समेत सैकड़ों लोग शामिल हुए।
यह सम्मेलन महिला मजदूरों की हक और सम्मान की लड़ाई का एक अहम पड़ाव साबित हुआ, जहां एक बार फिर यह संदेश दिया गया कि महिलाएं अब अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने से पीछे नहीं हटेंगी।
