गाजीपुर
कुंडेसर में धूमधाम से मनायी गयी संत रविदास की जयंती
गाजीपुर। स्थानीय विकास खंड क्षेत्र में संत शिरोमणि रविदास जयंती श्रद्धा और आस्था के साथ धूमधाम से मनाई गई। विशेष रूप से दलित समाज के लोगों ने भव्य पंडालों में उनकी प्रतिमाएं स्थापित कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। कई गांवों और दलित बस्तियों में भव्य आयोजन हुए, जिनमें भक्ति संगीत, प्रवचन और शोभायात्राएं शामिल रहीं।
महान संत और महापुरुष किसी एक जाति, संप्रदाय या धर्म के नहीं होते, बल्कि वे संपूर्ण मानवता के प्रेरणास्त्रोत होते हैं। बावजूद इसके, संत रविदास जी की जयंती विशेष रूप से दलित समाज द्वारा मनाया जाना आज भी विचारणीय विषय बना हुआ है। हालांकि, हर वर्ग के लोग उन्हें नमन करते हैं और उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करने का प्रयास करते हैं।
कुछ स्थानों पर इस अवसर पर भव्य जुलूस भी निकाले गए, जहां श्रद्धालुओं ने भक्ति-भाव से संत रविदास जी की शिक्षाओं का प्रचार किया। संत रविदास जी का जन्म 1377 ईस्वी में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था और 1522 ईस्वी में उन्होंने देह त्याग की। उनके पिता संतोख दास और माता कलसा देवी थीं। उनकी पत्नी का नाम लोना जी और पुत्र का नाम विजयदास था।
संत रविदास जी निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और दिखावा, छल-कपट तथा पाखंड के घोर विरोधी थे। वे मानवतावाद के ध्वजवाहक थे और समानता के सिद्धांत में विश्वास रखते थे। उनकी प्रसिद्ध उक्ति “मन चंगा तो कठौती में गंगा” आज भी समाज में प्रासंगिक बनी हुई है। हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई को उनकी शिष्या माना जाता है।
संत रविदास जी का जीवन संदेश हमें जाति और भेदभाव से ऊपर उठकर मानवता की सेवा करने की प्रेरणा देता है। उनका आदर्श समाज प्रेम, समानता और भक्ति पर आधारित था, जिसे आज भी उनके अनुयायी आत्मसात करने का प्रयास कर रहे हैं।