वाराणसी
महिंद्रा कबीरा फ़ेस्टिवल में गूंजा कबीर का कालजयी दर्शन
वाराणसी (जयदेश)। महिंद्रा कबीरा फ़ेस्टिवल के दूसरे दिन वाराणसी में संगीत, संवाद और साधना के माध्यम से संत कबीर का दर्शन जीवंत हो उठा। 19 दिसंबर को भव्य उद्घाटन के बाद 20 दिसंबर को आयोजित कार्यक्रमों ने कबीर के जीवन, काव्य और विचारों को नई संवेदना के साथ प्रस्तुत किया।
गुलेरिया कोठी में ‘सबलाइम मॉर्निंग्स’ के तहत दिन की शुरुआत स्वाति तिवारी के भारतीय शास्त्रीय गायन से हुई। इसके बाद प्रसिद्ध सितार वादक हिदायत हुसैन ख़ान ने अपनी मधुर प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। ‘इवोकेटिव आफ़्टरनून्स’ सत्र में शिवांगिनी और ईशा प्रिया सिंह ने ‘कबीर द जुलाहा: वर्सेज़ फ्रॉम द लूम’ के माध्यम से कबीर को एक रहस्यवादी कवि के साथ-साथ एक कुशल कारीगर के रूप में प्रस्तुत किया।

शाम होते ही शिवाला घाट पर ‘इक्लेक्टिक ईवनिंग्स’ सत्र में लोक कलाकार महेशा राम ने मेघवाल समुदाय की भक्ति परंपरा में रची-बसी ‘कबीर बानी’ की प्रस्तुति दी। इसके बाद प्रसिद्ध गायक राहुल देशपांडे की सशक्त गायकी ने वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया।

महिंद्रा समूह के वाइस प्रेसिडेंट एवं कल्चरल आउटरीच प्रमुख जय शाह ने कहा कि महिंद्रा कबीरा फ़ेस्टिवल संस्कृति को संवाद और साझा समझ का सशक्त माध्यम मानता है और कबीर की सत्य, समावेशिता व करुणा से भरी वाणी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। वहीं टीमवर्क आर्ट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर संजॉय के. रॉय ने इसे कबीर के साथ चलने वाला निरंतर संवाद बताते हुए कहा कि वाराणसी में लौटकर कबीर की कविता को इतिहास नहीं, बल्कि एक जीवित अनुभव के रूप में महसूस करने का अवसर मिलता है।
फ़ेस्टिवल के दौरान प्रतिनिधियों और आगंतुकों के लिए विरासत भ्रमण और मंदिर दर्शन जैसे विशेष अनुभव भी आयोजित किए गए, जिनके माध्यम से कबीर से जुड़े वाराणसी के भौतिक और आध्यात्मिक परिदृश्यों की झलक मिली। दो प्रेरक दिनों के बाद अब महिंद्रा कबीरा फ़ेस्टिवल 21 दिसंबर को अपने अंतिम दिन में प्रवेश कर रहा है, जहां कबीर की शाश्वत विरासत से जुड़ने के और भी सार्थक अनुभव प्रस्तुत किए ।
