गाजीपुर
अधर्म पर धर्म के विजय का प्रतीक है दशहरा

बहरियाबाद (गाजीपुर)। दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, भारत के सबसे महत्वपूर्ण और हर्षोल्लास भरे त्योहारों में से एक है। यह पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। ‘दशहरा’ शब्द का अर्थ है ‘दस हार’ या ‘दश पापों का हरण’, जो इस दिन के महत्व को दर्शाता है। यह पर्व मुख्य रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।
दशहरा का पर्व दो प्रमुख पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। भगवान राम की विजय: सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान राम ने दस सिर वाले राक्षस राजा रावण का वध किया था। रावण ने राम की पत्नी सीता का हरण कर लिया था, जिसके बाद राम ने वानर सेना की सहायता से लंका पर चढ़ाई की। नौ दिनों तक चले भयंकर युद्ध के बाद, दसवें दिन राम ने रावण का संहार किया। यह विजय सत्य, धर्म और न्याय की स्थापना का प्रतीक माना जाता है।
देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय: यह दिन माँ दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का भी प्रतीक है। महिषासुर ने अपने अत्याचारों से तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। तब देवताओं की शक्ति से उत्पन्न हुई माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक उससे युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया, जिसके कारण उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है। इन नौ रातों को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
दशहरा का पर्व पूरे देश में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन इसका मूल भाव एक ही रहता है – विजय का उत्सव। रामलीला और रावण दहन:उत्तर भारत में, दशहरा का सबसे खास आकर्षण रामलीला का मंचन होता है, जो रामायण की कथा पर आधारित एक नाट्य रूपांतरण है। यह नौ दिनों तक चलता है और दशमी के दिन इसका समापन होता है। इस दिन शाम को विशाल मैदानों में रावण, मेघनाद और कुंभकरण के विशाल पुतले बनाए जाते हैं। भगवान राम का पात्र निभाने वाला व्यक्ति इन पुतलों को तीर मारकर दहन करता है। यह अहंकार, बुराई और वासना के अंत का प्रतीक माना जाता है।
शस्त्र पूजा:परंपरागत रूप से, यह दिन शौर्य और शक्ति का भी प्रतीक है। इसलिए क्षत्रिय समुदाय और भारतीय सेना द्वारा इस दिन शस्त्र पूजा (हथियारों की पूजा) करने का विधान है। माना जाता है कि राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था।
मैसूर का दशहरा;दक्षिण भारत में, विशेष रूप से कर्नाटक के मैसूर में, दशहरा एक भव्य राजसी त्योहार के रूप में मनाया जाता है। यहाँ देवी चामुंडेश्वरी (दुर्गा का एक रूप) की पूजा की जाती है, जिन्होंने महिषासुर का वध किया था। इस अवसर पर मैसूर महल को लाखों दीपों से सजाया जाता है और एक शाही जुलूस (जम्बो सवारी) निकाला जाता है।
बंगाल की सिंदूर खेला:पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत में, यह पर्व दुर्गा पूजा के समापन का दिन होता है। इस दिन सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है, जहाँ विवाहित महिलाएँ देवी दुर्गा को सिंदूर लगाती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएँ देती हैं। यह हमें याद दिलाता है कि सत्य और धर्म की राह कितनी भी कठिन क्यों न हो, अंत में जीत उसी की होती है। यह पर्व हमें अपने अंदर के रावण – क्रोध, अहंकार, लालच, ईर्ष्या और वासना को पहचानने और उसका दहन करने की प्रेरणा देता है।
विजयादशमी का दिन हमें यह संकल्प लेने का अवसर प्रदान करता है कि हम हमेशा सत्य और न्याय के मार्ग पर चलना। दशहरा भारत की सांस्कृतिक विविधता, धार्मिक आस्था और नैतिक मूल्यों का एक जीवंत प्रदर्शन है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को प्रकाश और आशा का संदेश देता आ रहा है।