गाजीपुर
पुत्र मंगल और संतान प्राप्ति के लिए भक्तों ने की स्कंदमाता की पूजा-अर्चना

बहरियाबाद (गाजीपुर)। जिले के बहरियाबाद गांव एवं क्षेत्र के सभी मंदिरों में मां भगवती के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना कर सभी माता ने अपने-अपने पुत्रों के मंगल की कामना की। देवी भागवत पुराण के अनुसार स्कंदमाता जो भगवान कार्तिकेय की माता कही जाती हैं और अपने पुत्र के मंगल के लिए अथवा पुत्र प्राप्ति के लिए स्कंदमाता की पूजा की जाती है।
शारदीय नवरात्रि में, पांचवें दिन मां दुर्गा के पंचम स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इन्हें मातृत्व की देवी और प्रेम, ज्ञान तथा शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
स्कंदमाता नाम दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘स्कंद’ (भगवान कार्तिकेय का एक नाम) और ‘माता’ (मां)। चूंकि इन्होंने भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को जन्म दिया और उनका पालन-पोषण किया, इसलिए इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है।
माता का दिव्य स्वरूप
माता रानी सिंह पर विराजमान रहती हैं, जो बल और शक्ति का प्रतीक है।
वह चतुर्भुजा (चार भुजाओं वाली) हैं।
वह अपनी दाईं ओर की ऊपर वाली भुजा से अपने बालरूप पुत्र स्कंद को गोद में लिए हुए हैं।
उनके निचली दाहिनी भुजा में एक कमल का फूल है।
बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में होती है (आशीर्वाद देने की मुद्रा)।
निचली बाईं भुजा में भी एक कमल का फूल होता है।
वह कमल के आसन पर भी विराजमान दिखाई देती हैं, इसलिए इन्हें ‘पद्मासना देवी’ भी कहा जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब तारकासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब देवताओं ने उससे मुक्ति पाने के लिए माता पार्वती से प्रार्थना की। तारकासुर को वरदान था कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही होगी। उस समय माता पार्वती ने स्कंदमाता का रूप धारण किया और अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए तैयार किया। स्कंदमाता से शिक्षा और शक्ति प्राप्त करने के बाद भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया और देवताओं को भयमुक्त किया।
मां स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है:
ऐसी मान्यता है कि विधिवत पूजा करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है और संतान तेजस्वी व यशस्वी होती है। इन्हें मातृत्व की देवी कहा जाता है।
स्कंदमाता की उपासना से भक्तों को ज्ञान, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है।
इनकी कृपा से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है, तथा संकटों से मुक्ति मिलती है।
स्कंदमाता की पूजा से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
शारदीय नवरात्र में पूजा विधि
शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ पीले या सफेद वस्त्र धारण कर करें।
पूजा स्थल या चौकी पर माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करना चाहिए।
गंगाजल से मूर्ति को स्नान कराएं। कुमकुम, रोली, चंदन, अक्षत (चावल) और श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए।
मां को कमल का फूल विशेष रूप से प्रिय है। इसके अलावा पीले रंग के पुष्प भी अर्पित करना उत्तम होता है।
स्कंदमाता को केले का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। पीले रंग की मिठाई या केसर की खीर भी अर्पित करनी चाहिए।
घी का दीपक और धूप जलाकर माता के मंत्रों का जाप करें।
{ॐ देवी स्कंदमातायै नमः}
{सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।}
अंत में मां स्कंदमाता की आरती करके पूजा सम्पन्न करनी चाहिए।