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शिक्षा

बीएचयू का नेपाल अध्ययन केंद्र 50वीं सालगिरह से पहले ही बंद, शोध और पढ़ाई ठप

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वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के परिसर में स्थित प्रतिष्ठित नेपाल अध्ययन केंद्र अपनी 50वीं सालगिरह को पूरा भी नहीं कर पाया। 1976 में यूजीसी के एरिया स्टडी प्रोग्राम के तहत शुरू हुए इस केंद्र का उद्देश्य नेपाली विषयों पर निरंतर शोध और पढ़ाई को बढ़ाना था, पर अब वह व्यावहारिक रूप से बंद स्थिति में है। 2024 में केंद्र की गतिविधियाँ ठप हो गईं और 2025 पर पहुंचने तक न तो कोई नियमित प्रोफेसर बचे, न कोई शोधार्थी और न ही कर्मचारी — परिणामस्वरूप केंद्र का अस्तित्व केवल नाम का रह गया है।

कई दशकों से बीएचयू विदेशी छात्रों का प्रमुख केंद्र रहा है और विदेशी छात्रों में नेपाल का अनुपात उल्लेखनीय रहा है। विश्वविद्यालय के आँकड़ों के अनुसार विदेशी छात्रों में से करीब 60 प्रतिशत से अधिक विद्यार्थी नेपाल से आते रहे हैं। हर साल 600 से अधिक विदेशी छात्र बीएचयू में प्रवेश लेते हैं, जिनमें लगभग 378 विद्यार्थी नेपाल से आते हैं। ऐसे में नेपाल अध्ययन केंद्र के बंद रहने का प्रभाव केवल शैक्षणिक नहीं, बल्कि द्विपक्षीय शैक्षिक संपर्कों और शोध प्रणाली पर भी पड़ा है।

केंद्र के बंद होने के पीछे प्रशासनिक निर्णय और विभागीय समायोजन का हाथ माना जा रहा है। राजनीति विज्ञान विभाग में इसे समायोजित कर दिया गया, पर यह समायोजन केंद्र की वे मूलभूत गतिविधियों को कायम नहीं रख पाया। पूर्व समन्वयक और सेवानिवृत्त प्रोफेसर एन.पी. सिंह का कहना है कि पिछले कुलपति के कार्यकाल में यह कदम लिया गया था, जिसके बाद केंद्र के नाम में ही एक खालीपन दिखने लगा। अब न तो भवन जैसी सुविधाएँ बची हैं और न ही उस तरह के शोध कार्यक्रम जिनकी वजह से यह केंद्र कभी क्षेत्रीय अध्ययन के लिए जाना जाता था।

नेपाल से जुड़े कई प्रमुख राजनेता और शैक्षिक हस्तियाँ बीएचयू से जुड़ी रही हैं। नेपाल के गवर्नर और केंद्रीय बैंक प्रमुखों में से कुछ बीएचयू के पूर्व छात्र रहे हैं और सुशीला कार्की जैसी राजनीतिक शख्सियतों ने वहीं से अपनी शिक्षा पूरी की। ऐसे ऐतिहासिक जुड़ावों को देखते हुए विशेषज्ञों और पूर्व अधिवक्ताओं की राय है कि नेपाल स्टडी सेंटर को पुनः सक्रिय करना आवश्यक है ताकि नेपाल-सम्बन्धी शोध और नीति-सम्वन्धी विमर्श चल सकें और भौगोलिक व सांस्कृतिक समझ को भविष्य में बेहतर बनाया जा सके।

स्थानीय व्यापार पर भी हालात का असर दिखा है। हालिया घटनाओं के बाद नेपाल के साथ कुछ पारंपरिक व्यापार संबंध प्रभावित हुए हैं, जैसा कि फूल उद्योग में देखा गया। बनारस से नेपाल को भेजी जाने वाली गेंडे की माला शिपमेंट में गिरावट आई है। इस तरह के प्रभाव दर्शाते हैं कि शैक्षणिक बंदोबस्त का प्रभाव सिर्फ पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं रहता बल्कि आर्थिक और सामाजिक कड़ियों को भी प्रभावित कर सकता है।

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अकादमिक समुदाय कहता है कि नेपाल पर समर्पित शोध गतिविधियाँ और विद्वानों के बीच संवाद ही भविष्य में क्षेत्रीय अस्थिरता की समझ और समाधान की दिशा में मदद कर सकते हैं। इसलिए केंद्र को पुनः स्थापित करने और उसे पर्याप्त संसाधन देने की वकालत अब जोर पकड़ रही है, ताकि बीएचयू व बनारस की वह पहचान फिर से मजबूत हो सके जो कभी इसे क्षेत्रीय अध्ययनों का एक प्रमुख केंद्र बनाती थी।

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