गोरखपुर
साखडाड पांडेय के महिलवार टोला में पेयजल योजना अधर में, ग्रामीणों की प्यास अब भी अधूरी
गोरखपुर। जिले की ग्राम पंचायत साखडाड पांडेय के टोला महिलवार में “हर घर जल” योजना का हाल निराशाजनक बन गया है। 09 सितंबर 2022 को शुरू हुई इस महत्वाकांक्षी योजना को 18 माह में पूरा करने का वादा किया गया था, लेकिन 36 माह गुजर जाने के बाद भी कार्य अधूरा ही पड़ा है। इस कारण ग्रामीणों की लंबे समय से बुझी प्यास का सपना अब भी अधर में लटका हुआ है।
योजना की शुरुआत बड़े-बड़े दावों और आश्वासनों के साथ हुई थी। हर घर नल से जल उपलब्ध कराने का वादा करते हुए, कुछ स्थानों पर पाइपलाइन डाल दी गई थी, लेकिन अधिकांश हिस्सों में काम रोक दिया गया।
ग्रामीण बताते हैं कि जिम्मेदार संस्था ने योजना को गंभीरता से नहीं लिया। मजदूर कुछ समय के लिए काम करते हैं और फिर लंबे समय तक गायब रह जाते हैं। ठेकेदार या अधिकारी का नाम-पता ग्रामीणों के पास नहीं है। जब उनसे पूछते हैं कि अधिकारी कब आते हैं, जवाब मिलता है – “कभी-कभी आते हैं।”ग्रामीणों की शिकायत है कि संपर्क करने के सभी प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं। फोन उठाया नहीं जाता और न ही जिम्मेदार अधिकारियों का कोई स्पष्ट पता उपलब्ध है।
पारदर्शिता पूरी तरह गायब है, जिससे लोगों में असंतोष और निराशा बढ़ रही है। यह योजना प्रधानमंत्री द्वारा घोषित “हर घर जल” मिशन का हिस्सा है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की मूलभूत समस्या को हल करने के लिए शुरू की गई थी। लेकिन साखडाड पांडेय के महिलवार टोला का उदाहरण दिखाता है कि ज़मीनी हकीकत कितनी भिन्न है।
जहां सरकार इसे विकास का क्रांतिकारी कदम बताती है, वहीं ग्रामीण अभी भी कुएं, हैंडपंप और निजी साधनों पर निर्भर हैं।ग्रामीणों का कहना है कि यह योजना आज सिर्फ कागजी विकास का प्रतीक बनकर रह गई है। खुदाई से सड़कों और गलियों की हालत खराब हो गई है, बारिश में कीचड़ और गड्ढे लोगों के लिए खतरा बन जाते हैं। अधूरी पाइपलाइन लंबे समय तक बेकार पड़ी होने से जंग और रिसाव की समस्या भी पैदा कर रही है।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि योजना पूरी कब होगी। 18 माह की समयसीमा तो कब की पार हो गई, 36 माह भी गुजर गए, लेकिन कोई नई समयसीमा नहीं बताई गई। ग्रामीण पूछ रहे हैं – “क्या यह योजना सिर्फ अधिकारियों और नेताओं के लिए लाभ का साधन बनकर रह जाएगी?”साखडाड पांडेय के महिलवार टोला की यह स्थिति विकास के खोखले दावों पर करारा सवाल है।
यह केवल योजना की देरी नहीं, बल्कि हजारों ग्रामीणों की उम्मीदों के साथ धोखा भी है। जिम्मेदारों की उदासीनता यह दर्शाती है कि गांव की गली से संसद तक आवाज पहुंचाना आज भी उतना ही जरूरी है।
