गोरखपुर
गोरखपुर ड्राइवर मनोज मर्डर केस, संदिग्ध मौत ने उठाए बड़े सवाल
अदालत के आदेश पर हत्या का मुकदमा दर्ज
गोरखपुर के गुलरिहा क्षेत्र में ड्राइवर मनोज की संदिग्ध मौत का मामला नौ महीने बाद फिर सुर्खियों में आया है। अदालत के आदेश पर आठ आरोपियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है, जिससे पुलिस की निष्क्रियता और न्याय की देरी पर गंभीर सवाल उठे हैं।
दिसंबर 2024 में हुई इस घटना में 41 वर्षीय मनोज अपने मैजिक वाहन से महराजगंज जा रहे थे, जब गुलरिहा बाजार नहर के पास बाइक बचाने के प्रयास में उनकी गाड़ी दूसरी दोपहिया वाहन से टकरा गई। आरोप है कि इसके बाद बाइक के मालिकों सहित अन्य लोगों ने मनोज को जबरन वाहन से खींचकर पीटना शुरू किया, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। अगले दिन मनोज का शव उनके वाहन की डिग्गी में संदिग्ध हालत में मिला।
घटना स्थल पर खून के धब्बे और गवाहों के बयान इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह कोई सामान्य हादसा नहीं था, बल्कि सुनियोजित हमला था।पीड़ित पत्नी सिब्बी देवी ने आरोप लगाया कि घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दी गई, लेकिन किसी ने ठोस कार्रवाई नहीं की और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बावजूद मामला संदिग्ध मौत बताकर दबा दिया गया।
परिवार का कहना है कि प्रभावशाली लोगों के दबाव में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की, जिससे न्याय व्यवस्था पर सवाल उठते हैं। जब परिवार की गुहार अनसुनी रही, तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने आठ आरोपियों के खिलाफ धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया।
इसके बाद गुलरिहा पुलिस ने तीन नामजद और पांच अज्ञात आरोपियों को केस में शामिल करते हुए जांच शुरू कर दी। पुलिस का कहना है कि सीसीटीवी फुटेज और गवाहों के बयान मामले को मजबूती देंगे।इस घटना ने गोरखपुर समाज में भी चर्चा का विषय बना दिया है। लोगों का मानना है कि अगर पुलिस ने शुरुआत में ही कड़ी कार्रवाई की होती, तो आरोपियों के खिलाफ समय पर न्याय मिल सकता था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़क हादसों और छोटी-मोटी कहासुनी के बाद मारपीट की घटनाएं बढ़ रही हैं, और इस मामले ने कानून-व्यवस्था पर भरोसे को झटका दिया है। पुलिस और वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि जांच जारी है और दोषियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा।
मनोज अपने परिवार के इकलौते सहारे थे। उनकी पत्नी और दो छोटे बच्चों का जीवन अचानक कठिनाइयों से घिर गया है। सिब्बी देवी का कहना है कि उन्हें सिर्फ न्याय ही नहीं, बल्कि आर्थिक मदद की भी आवश्यकता है।
स्थानीय संगठनों ने परिवार को समर्थन देने की मांग की है। गोरखपुर की यह घटना न केवल एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि कानून-व्यवस्था पर भी गंभीर चोट है। अदालत के हस्तक्षेप से मुकदमा दर्ज होना न्याय की दिशा में एक कदम है, लेकिन सवाल यह है कि आम और गरीब लोगों को न्याय के लिए इतनी लंबी लड़ाई क्यों लड़नी पड़ती है।
