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वाराणसी

मंडलायुक्त ने गंगा घाटों के पुनरुद्धार कार्यों का किया निरीक्षण

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वाराणसी। गंगा घाटों की ऐतिहासिक गरिमा और पर्यटन आकर्षण को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से मंडलायुक्त एस. राजलिंगम ने रविवार को मोटर बोट से नमो घाट से प्रस्थान करते हुए घाटों के पुनरुद्धार कार्यों का स्थल निरीक्षण किया। इस निरीक्षण अभियान के दौरान कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) के अंतर्गत पिरामल फाउंडेशन द्वारा प्रायोजित आठ कच्चे घाटों पर चल रहे कार्यों की गहन समीक्षा की गई।

जिन घाटों पर कार्य हो रहे हैं, उनमें पंच अग्नि अखाड़ा घाट, रानी घाट, प्रह्लाद घाट, नया घाट, तेलिया नाला घाट, सक्का घाट, निषादराज घाट और गोला घाट शामिल हैं। इन कार्यों का उद्देश्य घाटों को सिर्फ भौतिक रूप से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी पुनर्स्थापित करना है, जिससे स्थानीय समुदायों की भागीदारी और आस्था जुड़ी रहे।

प्रत्येक घाट पर पारंपरिक स्थापत्य में बने चबूतरे, छत्रियां, विश्राम स्थल, एम्फीथियेटर, शौचालय, पुलिस चौकी और ऐतिहासिक साइनबोर्ड जैसी सुविधाओं का निर्माण किया जा रहा है। खास ध्यान घाटों की रात्रिकालीन छवि को आकर्षक बनाने पर दिया जा रहा है।

पिरामल ग्रुप के प्रतिनिधि आदित्य कुमार सिंह को घाटों से सटी इमारतों की पेंटिंग को थीमैटिक रंगों के अनुसार कराने तथा म्यूरल्स के माध्यम से सांस्कृतिक पहचान को उभारने के निर्देश दिए गए। गैजेबो की संरचना की सुरक्षा के ऑडिट की पुष्टि IIT-BHU द्वारा की गई है।

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मणिकर्णिका घाट पर मंडलायुक्त ने कार्यदायी संस्था ब्रिजटेक इंफ्राविजन को सुरक्षा उपायों को प्राथमिकता देने और मानसून पूर्व कार्य शीघ्रता से पूर्ण करने के निर्देश दिए। वहीं हरिश्चंद्र घाट पर जल निगम के अधिशासी अभियंता को सीवर और स्टॉर्म वॉटर पाइपलाइन की मरम्मत कार्य तत्काल कराने को कहा गया।

निरीक्षण के दौरान कर्नाटक स्टेट गेस्ट हाउस की जर्जर स्थिति पर संज्ञान लेते हुए नगर निगम को तत्काल नोटिस जारी करने के निर्देश भी दिए गए। इसके साथ ही अस्सी घाट से रविदास घाट तक पर्यटन विभाग की प्रस्तावित परियोजना के स्थलीय निरीक्षण में विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।

मंडलायुक्त ने स्पष्ट निर्देश दिए कि घाटों पर चल रहे सभी कार्य गुणवत्तापूर्ण हों, जिनमें सांस्कृतिक समरसता, पर्यावरणीय सुरक्षा और नागरिक सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाए। उन्होंने कहा कि वाराणसी की वैश्विक सांस्कृतिक पहचान को और सुदृढ़ करने के लिए इन प्रयासों को समयबद्ध तरीके से पूर्ण किया जाना आवश्यक है।

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