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गाजीपुर

कुम्हारों की कला संकट में, प्लास्टिक के बर्तनों से आजीविका पर असर

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गाजीपुर। जिले के बहरियाबाद क्षेत्र के आसपास के गांवों में बसे कुम्हारों की एक प्राचीन कला आज संकट में है। मिट्टी के बर्तनों से अपनी आजीविका चलाने वाले ये कुम्हार अब प्लास्टिक के घरेलू बर्तनों के कारण एक जून की रोटी के लिए मोहताज हो गए हैं। कुम्हारों के पारंपरिक चाक पर मिट्टी से बर्तन बनाने की कला सदियों से प्रचलित रही है, लेकिन बदलते वक्त में यह कला धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।

कुम्हार का चाक एक विशेष मशीन होती है, जिस पर मिट्टी को गोल आकार में ढालकर विभिन्न बर्तनों का निर्माण किया जाता है। ये बर्तन, जैसे घड़ा, सुराही, हांडी, तवा और कुल्हड़, न केवल पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी लाभकारी माने जाते हैं। गर्मियों में चाक से बने घड़े और सुराही में पानी पीने से स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।

मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से शरीर को ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो कई बीमारियों से बचाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, भोजन को धीरे-धीरे पकाकर खाना सेहत के लिए फायदेमंद होता है। आज भी कई शहरों में हांडी में बना पकवान लोगों द्वारा पसंद किया जाता है।

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कुम्हारों की इस महत्वपूर्ण कला को संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि यह पारंपरिक हुनर विलुप्त न हो जाए। कुम्हारों के इस अद्भुत शिल्प को जीवित रखने के लिए इसे प्रोत्साहित करना और उनके काम की सराहना करना बेहद जरूरी है।

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