वाराणसी
सेहतनामा- प्लास्टिक से जन्मजात बीमारियों का खतरा, फेफड़े खराब
बोतलबंद पानी में ढाई लाख प्लास्टिक कण, रेगिस्तान से माउंट एवरेस्ट तक यह दैत्य
आप नींद से जागते हैं, आपके बिस्तर पर प्लास्टिक जमा है, आसपास भी प्लास्टिक के ढेर। कुछ समझ नहीं आ रहा, आप हड़बड़ाकर बाहर भागते हैं। वहां भी चारों ओर प्लास्टिक भरा पड़ा है। हद तो तब हो गई जब आप देखते हैं कि यह हवा में भी तैर रहा है। जो हर सांस के साथ आपके भीतर जा रहा है। आपको यह सब कितना काल्पनिक लग रहा होगा ना, पर ये है सच। अगर हम माइक्रो और नैनो प्लास्टिक को अपनी आंखों से देख पाते तो कुछ ऐसा ही नजारा होता।
सैकड़ों वर्षों से प्लास्टिक हमारे पर्यावरण में जमा हो रहा है। यह बढ़ते-बढ़ते इस स्तर पर आ गया है कि आपके जीवन पर ही खतरा बनकर मंडरा रहा है। खाना, पानी, हवा हर चीज में छिपकर बैठा है।
सवाल हो सकता है कि यह खाना, पानी और हवा में कैसे शामिल हुआ? गौर से देखिए, आपके रोजाना इस्तेमाल की सभी चीजें प्लास्टिक में ही तो पैक्ड हैं। चिप्स के पैकेट, किचन आइटम्स, पानी की बॉटल से लेकर टी बैग तक हर चीज तो प्लास्टिक में पैक है। यही प्लास्टिक महीन टुकड़ों में बंटकर इन चीजों में चुपचाप शामिल होता जाता है।
आपके वॉटर बॉटल में हैं ढाई लाख प्लास्टिक के कण
इससे जुड़ी एक रिपोर्ट सामने आई है। इसपर काम किया है प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज नाम की संस्था ने। पूरी स्टडी आपकी प्लास्टिक बॉटल के इर्द गिर्द ही है। जिसे आप ऑफिस ले जाते हैं, घूमने-फिरने जाने पर साथ ले जाते हैं। कई बार तो घर पर भी इस्तेमाल करते हैं।
इसमें मदद ली गई है एक नई टेक्नॉलजी की। जिसे स्टिमलेटेड रमन स्कैटरिंग माइक्रोस्कोपी कहा जााता है। इस मशीन की आंखें और गणित दोनों तेज हैं। पहले तो ये महीन से महीन प्लास्टिक टुकड़ों को खोजती है फिर गिनती भी लगाती है। इस मशीन ने बताया है कि एक लीटर पानी में लगभग 2 लाख 40 हजार प्लास्टिक के बेहद महीन टुकड़े होते हैं। यह हाल तब है जब इसमें टॉप 10 ब्रांडेड पानी के बॉटल शामिल किए गए।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में इंवायरमेंटल केमिस्ट और इस स्टडी के लेखक बेइजान यान कहते हैं, ‘पहले इस बारे में हमें कुछ भी पता नहीं था। इस स्टडी ने नए दरवाजे खोल दिए हैं।’
कितने बड़े होते हैं माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक?
माइक्रोप्लास्टिक का आकार आसान भाषा में ऐसे समझिए कि आपके बेडशीट को चूहे कुतर दें, उसके 10 लाख टुकड़े कर दें। तब उसका एक टुकड़ा होगा माइक्रोप्लास्टिक के बराबर। नैनोप्लास्टिक के आकार की तो कल्पना भी मुश्किल है, उस बेडशीट का एक अरबवां हिस्सा।
हमारा दैत्य हमको ही खा रहा
पूरी दुनिया में हर साल इंसान 40 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक का प्रोडक्शन कर रहा है। उसमें से 3 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक पानी या जमीन पर फेंका जा रहा है। प्लास्टिक नष्ट तो होता नहीं, फिर ये जाता कहां है। ये हवा के जरिए हमारी सांस में जाता है, मिट्टी में मिलकर फसलों, पेड़ों और अंत में हमारे भोजन में जाता है। कुल मिलाकर हमारा बनाया दैत्य पलटकर हमें ही खाता है।
ऐसे आपकी सेहत को नुकसान पहुंचा रहा
आप जिस इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में यह खबर पढ़ रहे हैं, आपके कपड़े, चप्पल या जूते, आपके बिस्तर हर चीज में तो प्लास्टिक भरा पड़ा है। यह इंसानी इलाकों के अलावा भी बहुत जगह पहुंच गया है। ईरान के रेगिस्तान में प्लास्टिक देखा गया, अंटार्कटिका की बर्फ में, यहां तक कि माउंट एवरेस्ट की चोटी में भी प्लास्टिक मिला। यहां आपको सचेत होने की सख्त जरूरत है। क्योंकि प्लास्टिक पर्यावरण और आपकी सेहत दोनों के लिए बड़ा खतरा है।
फेफड़ों के लिए बड़ा खतरा है प्लास्टिक
इस बात के कई संकेत मिले हैं कि सांस में घुलकर जाने वाला प्लास्टिक हमारे फेफड़ों को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है। इस बारे में वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं कि अगर लंबे समय तक यह प्लास्टिक जमा होता रहा तो क्या होगा? कुछ स्टडीज इस ओर इशारा करती हैं कि वातावरण में मौजूद ये प्लास्टिक हमारी सेहत के साथ कैसे खिलवाड़ कर रहा है।