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अपराध

सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटा

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सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को मद्रास हाई कोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए कहा कि लाभ के इरादे से डिजिटल उपकरणों में बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी देखना और संग्रहित करना यौन अपराध आल संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत अपराध हो सकता है।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ ‘जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन अलायंस’ की अपील और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के हस्तक्षेप पर उच्च न्यायालय के एक फैसले को पलटने वाला यह ‘ऐतिहासिक’ फैसला सुनाया। पीठ ने अपने इस फैसले में ‘बाल पोर्नोग्राफी’ शब्द की जगह ‘बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री’ संशोधित करने के लिए जरूरी प्रक्रिया अपनाने का केंद्र सरकार को भी निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यदि कोई आपको सोशल मीडिया पर चाइल्ड पोर्न संबंधित चीजें भेजता है तो यह अपराध नहीं है लेकिन अगर आप इसे देखते हैं और दूसरों को भेजते हैं तो यह अपराध के दायरे में आता है। सिर्फ इस वजह से कोई अपराधी नहीं हो जाता क्योंकि उसे किसी ने इस तरह का वीडियो भेजा है।

हाई कोर्ट के उस फैसले में न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने कहा था कि किसी के व्यक्तिगत इलेक्ट्रोनिक डिवाइस पर चिल्ड्रन पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना या फिर उसे सिर्फ देखना पोक्सो एक्ट और आईटी एक्ट के तहत अपराध नहीं है। हाई कोर्ट ने एस हरीश नामक व्यक्ति के खिलाफ शुरू हुई कार्यवाही को रद्द करते वक्त यह टिप्पणियां की थीं।

हरीश के खिलाफ अपने मोबाइल पर दो चाइल्ड पोर्नोग्राफी वीडियो डाउनलोड करने और देखने के लिए पोक्सो अधिनियम और आईटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। मार्च में इस मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाई कोर्ट की टिप्पणी घृणास्पद थीं।

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