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पूर्वांचल

सनातन धर्म में गोवर्धन पूजा का महत्व और मनाने का अलग-अलग विधि

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गाजीपुर। सनातन धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है, और दीपावली के अगले दिन पूरे देश में इस पर्व की विशेष रौनक देखी जाती है। इस दिन गाय के गोबर से भगवान श्री कृष्ण का चित्र बनाकर शुभ मुहूर्त में पूजा की जाती है और उन्हें प्रिय भोग अर्पित किया जाता है।

धार्मिक मान्यता है कि इस पूजा से सुख-संपत्ति में वृद्धि होती है और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है। पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर भगवान श्री कृष्ण ने अपनी तर्जनी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्रदेव के अहंकार को तोड़ा था जिससे ब्रजवासियों और उनके पशुओं की रक्षा हुई। इसके बाद सभी ने श्री कृष्ण की पूजा की और भोग अर्पित किया।

पूर्वांचल क्षेत्र में इस दिन एक विशेष परंपरा के तहत ग्रामीण महिलाएं अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करते हुए गोबर से यम और यमी का चित्र बनाकर उसे कूटती हैं। इसे मान्यता है कि इससे भाइयों की आयु बढ़ती है। साथ ही, चने और तिलकुट जैसी मिठाइयाँ भी चढ़ाई जाती हैं। इसे खाने से भाई का शरीर मजबूत होता है।

देश के अलग-अलग क्षेत्रों में गोवर्धन पूजा अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है। जैसे गोकुल में बहनें अपने भाई का हाथ पकड़कर यमुना में स्नान करती हैं और उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं तो कहीं नारियल देकर माथे पर तिलक लगाती हैं। एक देश कई परंपराएं—हर क्षेत्र अपनी मान्यताओं के अनुसार इस पर्व को धूमधाम से मनाता है।

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