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मिर्ज़ापुर

“वैदिक काल में नहीं था जातिवाद, अंग्रेजों ने किया समाज को विभाजित” : विनायक राव देशपांडे

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मिर्जापुर। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की सामाजिक समरसता संगोष्ठी में केंद्रीय सह संगठन मंत्री विनायक राव देशपांडे ने कहा कि वैदिक काल में छुआछूत और जातिगत भेदभाव का कोई स्थान नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि विदेशी आक्रमणकारियों और अंग्रेजों ने “फूट डालो, राज करो” की नीति अपनाकर समाज को विभाजित किया। पहली बार अंग्रेजों ने जातियों की सूची जारी कर समाज में भेदभाव को बढ़ावा दिया, जिससे हिंदू समाज आज भी संघर्ष कर रहा है।

उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में सभी जातियां समान मानी जाती थीं, और महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में भी जाति पूछने की परंपरा नहीं थी। आज भी लाखों श्रद्धालु एक ही घाट पर स्नान करते हैं, जो समरसता का प्रतीक है। उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुस्तक का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने भी इस तथ्य को स्वीकार किया था, लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के कारण कुछ लोग इसे उजागर नहीं करते।

देशपांडे ने कहा कि वैदिक काल में जाति जन्म से नहीं, बल्कि कर्म से निर्धारित होती थी। महिलाओं की शिक्षा को अनिवार्य माना जाता था, और वेदों में 27 विदुषी महिलाओं का उल्लेख मिलता है। उन्होंने इस धारणा को खारिज किया कि कोई व्यक्ति जन्म से अछूत हो सकता है। सभी में परमेश्वर का वास होता है और भेदभाव करना पाखंड के समान है।

उन्होंने यह भी कहा कि मुगल काल में भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया गया और जातिवाद का जहर बोकर समाज को तोड़ने की साजिश रची गई। अंग्रेजों ने इसे और हवा दी, जिससे समाज में कटुता फैली। उन्होंने जोर देकर कहा कि व्यक्ति की महानता जाति से नहीं, बल्कि उसके कर्म और भगवत भक्ति से तय होती है।

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कार्यक्रम में पूर्व सांसद राम शकल, नगर विधायक रत्नाकर मिश्र, मड़िहान विधायक रमाशंकर सिंह पटेल, नगर पालिका अध्यक्ष श्यामसुंदर केसरी समेत कई गणमान्य लोग मौजूद रहे। सभी ने सामाजिक समरसता और जातिवाद मुक्त समाज की आवश्यकता पर जोर दिया।

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