चन्दौली
“मां की ममता का कोई विकल्प नहीं” : डॉ. अर्पिता
चंदौली। इस धरती का सबसे सुंदर शब्द ‘मां’ है। मां की ममता व प्यार-दुलार का कोई सानी नहीं है। क्योंकि एक मां ही है जो जन्म से लेकर बड़ा होने तक अपने बच्चों की सभी जरूरतों व उनकी खुशियों को पूरा करती रहती है। खुद भूखा रहकर भी अपने बच्चों का पेट भरती है। इसलिए ‘मां’ का स्थान कोई नहीं ले सकता है।
उक्त बातें रविवार को मदर्स डे के अवसर पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अर्पिता चौरसिया ने कही। डॉ. चौरसिया ने कहा कि मां बच्चों की प्रथम शिक्षिका होती है। जीवन में अनगिनत कष्टों को सहते हुए भी मां अपने बच्चों को खुशियां प्रदान करती है। कहा कि बच्चा जब बोलना सिखता है तो सबसे पहले वह मां शब्द ही बोलता है। बच्चों को सही व गलत का एहसास मां के द्वारा ही कराया जाता है। मां अपने बच्चों का कभी भी बुरा नहीं करती है। जीवन पर्यन्त वह अपने बच्चों के लिए खुशियां तलाश करती रहती है।
लेकिन आज की सच्चाई यह है कि वही बच्चा जब बड़ा होता है तो वह मां की उपेक्षा करता है। एक मां अकेले चार से पांच बच्चों का पालन-पोषण ठीक से कर लेती है। लेकिन एक मां को बुढ़ापे में चार-पाँच बच्चे मिलकर भी ठीक से पालन नहीं कर पाते हैं। आधुनिकता की चकाचौंध में आज की युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति व संस्कार को भूल चुकी है। उसे इस बात का एहसास भी नहीं रहता है कि जिस मां ने बचपन में उंगली पकड़कर चलना सिखाया, आज वह उसी मां के सपनों को पूरा करने में नाकाम साबित हो रहा है। जबकि मां करूणा व दया का सागर है। इसलिए हर बच्चे का कर्तव्य है कि अपनी मां का सम्मान करें।”
