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गाजीपुर

भागवत कथा से संस्कार, सहयोग और समरसता की भावना का होता है विकास : हरिप्रकाश महाराज

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भांवरकोल (गाजीपुर)। क्षेत्र के लौवाडीह में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिन धर्मदूत हरिप्रकाशजी महाराज ने कहा कि भागवत कथा केवल धर्म और अध्यात्म का स्रोत ही नहीं, बल्कि मानव जीवन को सकारात्मक दिशा देने वाला महापवित्र ग्रंथ है। कथा के श्रवण मात्र से ही व्यक्ति जन्म–जन्मांतर के बंधनों से मुक्त होने की दिशा में अग्रसर हो जाता है।

उन्होंने बताया कि कथा श्रवण से तनाव, चिंता और मानसिक अशांति दूर होती है। परिवार में संस्कार, आपसी प्रेम, सहयोग और समरसता की भावना विकसित होती है। कथा से उत्पन्न भक्ति मनुष्य को धर्म, सत्य और कर्तव्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

दुन्दुभि की कथा का वर्णन करते हुए महाराज ने कहा कि दैत्य कुल में उत्पन्न दुन्दुभि अत्यंत पराक्रमी और अहंकारी था। अपने बल के मद में उसने देवताओं, दानवों और वीर योद्धाओं को युद्ध की चुनौती दे डाली। अभिमानवश उसने भगवान को भी युद्ध के लिए ललकारा। किंतु उसका यही उद्दंड व्यवहार उसके विनाश का कारण बना। युद्ध में पराजित होने पर दुन्दुभि का शव दूर जाकर गिरा। जनमानस में यह कथा इस रूप में विख्यात हुई कि उसके गिरने से उत्पन्न भीषण गर्जना ही ‘दुन्दुभि’ नाम की प्रतीक बनी।

यह कथा केवल युद्ध वर्णन नहीं, बल्कि अहंकार के विनाश का संदेश देती है। प्रवचन में बताया गया कि शक्ति, सामर्थ्य और प्रतिष्ठा तभी तक कल्याणकारी हैं, जब तक उनका उपयोग मर्यादा, विवेक और विनम्रता के साथ किया जाए।

कथा श्रवण में बच्चन पांडेय, रविन्द्रनाथ राय, जनकदेव राय, ग्राम प्रधान रविशंकर राय, ओमप्रकाश शर्मा, उमाशंकर शर्मा, अवधेश यादव, राजेश राय, राजाराम यादव, हरेंद्र खरवार सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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