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बाबू जगत सिंह की बलिदानगाथा शिक्षा में शामिल हो: डॉ. जोशी

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वाराणसी। वाराणसी के पूर्व सांसद और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष पद्मविभूषण डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी को पत्र भेजकर स्वतंत्रता संग्राम की उपेक्षित और विस्मृत गाथाओं को शिक्षा प्रणाली में शामिल करने की अपील की है। उन्होंने विशेष रूप से 1799 की काशी में हुई आजादी की पहली क्रांति और उसके वीर सेनानी बाबू जगत सिंह के योगदान को नई पीढ़ी तक पहुंचाने पर ज़ोर दिया।

डॉ. जोशी ने अपने पत्र के साथ दो पुस्तकें संलग्न की हैं—”बनारस के विस्मृत जननायक बाबू जगत सिंह : 1799 भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की अनकही गाथा” और “सारनाथ की खोज में बाबू जगत सिंह की भूमिका”। इन पुस्तकों में ऐतिहासिक दस्तावेजों और प्रमाणों के आधार पर यह दर्शाया गया है कि ब्रिटिश शासन के इतिहास लेखन ने किस तरह भारतीय दृष्टिकोण को दबाया।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि बाबू जगत सिंह ने 1799 में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह करते हुए चार अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था, जिन्हें मकबूल आलम रोड स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया। इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के अनुसार यह भारत में स्वतंत्रता की पहली सशस्त्र क्रांति मानी जा सकती है।

इस पहल पर जगतगंज राजपरिवार के प्रतिनिधि प्रदीप नारायण सिंह, प्रो. राणा पी.बी. सिंह, त्रिपुरारी शंकर एडवोकेट, मेजर अरविंद सिंह, अशोक आनंद, राजेंद्र कुमार दूबे और शमीम अहमद आदि ने हर्ष व्यक्त किया है। सभी ने आशा जताई कि यह प्रयास आने वाली पीढ़ियों को अपने इतिहास की अनकही सच्चाई से अवगत कराएगा।

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