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वाराणसी

प्रसिद्ध वैयाकरण प्रो. गिरिजेश का निधन, संस्कृत जगत ने खोया महान आचार्य

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वाराणसी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष रह चुके प्रसिद्ध वैयाकरण प्रोफेसर गिरिजेश कुमार दीक्षित का रविवार की शाम निधन हो गया। उन्होंने वाराणसी के भोजूबीर स्थित इनफिनिटी अस्पताल में शाम 5 बजे अंतिम सांस ली। उनके निधन से संस्कृत जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि “व्याकरण के राष्ट्रीय स्तर के अप्रतिम विद्वान प्रो. गिरिजेश कुमार दीक्षित अब पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं। उनके जाने से संस्कृत जगत को अपूरणीय क्षति हुई है।”

साहित्य और शिक्षण में अमिट योगदान

प्रो. गिरिजेश कुमार दीक्षित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद–वेदांग संकायाध्यक्ष और व्याकरण विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहे। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा की कड़ी को समृद्ध करने में अपना अमूल्य योगदान दिया। उनके निर्देशन में कई शिष्य आज कुलपति, निदेशक और अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं।

उन्होंने विश्वविद्यालय की विभिन्न उच्चस्तरीय समितियों में अध्यक्ष, समन्वयक, संयोजक एवं सदस्य के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अनेक ग्रंथों का संपादन और लेखन किया, जिनमें उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति ‘सप्तटीकासंयुक्ता श्री दुर्गा सप्तशती’ है, जो वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध है और जिस पर आज भी शोध कार्य जारी हैं।

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प्रमुख ग्रंथ एवं संपादन कार्य

प्रो. कालिका प्रसाद शुक्ल की रचना ‘राधाचरित महाकाव्यम्’ की टीका, संपादन और अनुवाद का कार्य प्रो. दीक्षित ने किया। इसी प्रकार ‘भास्कर भाव मानवः’ स्रोतकाव्य पर आधारित टीका ‘भानुमति’ और अनुवाद ‘भास्करी’ भी उनके द्वारा संपादित हैं।

उन्होंने व्याकरण के क्षेत्र में नागेश भट्ट रचित ‘परिभाषेन्दुशेखर’ पर भी टीका-संपादन का कार्य किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने अपने गुरु प्रो. विश्वम्भर नाथ त्रिपाठी की पुस्तक ‘अग्निचयनम्’ की भूमिका एवं प्रस्तावना लिखी, जो उनके निधन के बाद प्रकाशित हुई।

मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत व्यक्तित्व

प्रो. दीक्षित न केवल एक विद्वान आचार्य थे, बल्कि गरीब छात्रों की सहायता करने वाले एक संवेदनशील शिक्षक भी थे। वे अपने घर पर भी जरूरतमंद विद्यार्थियों को पढ़ाते और आर्थिक मदद करते थे।

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उनका पैतृक निवास ग्राम करजानिया (पत्रालय भूपतिपुरा), थाना खामपार, ब्लॉक बनकटा, तहसील सलेमपुर, जनपद देवरिया में है। उनके पिता स्वर्गीय केदारनाथ दीक्षित सलेमपुर संस्कृत पाठशाला के प्राचार्य रहे, जबकि माता स्वर्गीय चंद्रावती देवी साध्वी स्वभाव की गृहणी थीं।

संस्कृत जगत में शोक की लहर

प्रो. गिरिजेश कुमार दीक्षित अपने पीछे भरा-पूरा परिवार और सैकड़ों शिष्य छोड़ गए हैं। विश्वविद्यालय परिवार सहित संपूर्ण संस्कृत जगत उनके निधन से मर्माहत है। उनकी विद्वता, शोधपरक दृष्टि और सरल व्यक्तित्व को सदैव याद किया जाएगा।

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