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गोरखपुर

प्रधानी चुनाव की तिथि घोषित नहीं, आरक्षण को लेकर बढ़ी बेचैनी

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गोरखपुर। गाँवों में प्रधान पद का चुनाव भले ही अभी आधिकारिक रूप से घोषित नहीं हुआ है, लेकिन आरक्षण को लेकर माहौल पहले से ज्यादा गर्म है। कई गाँवों में यह चर्चा चरम पर है कि इस बार सीट किस श्रेणी में जाएगी—सामान्य, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति या महिला। अभी प्रशासन की ओर से कोई अंतिम सूची जारी नहीं हुई है, पर ग्रामीणों ने अपने-अपने स्तर पर दावे करना और अनुमान लगाना शुरू कर दिया है।

हर चौपाल, हर नुक्कड़ और हर घर में सवाल यही गूंज रहा है—“इस बार हमारे गाँव की सीट किस वर्ग के लिए आरक्षित होगी?”कई गाँवों में लोगों का मानना है कि पिछले चक्र के हिसाब से अब आरक्षण बदलना चाहिए। कुछ जगहों पर ग्रामीणों का तर्क यह है कि पिछले कई वर्षों से एक ही वर्ग को मौका मिल रहा है, इसलिए इस बार बदलाव जरूरी है।

वहीं, कुछ गाँवों में लोग यह कह रहे हैं कि उनकी जनसंख्या के अनुपात में इस बार उनका वर्ग मजबूत दावेदार है। यही कारण है कि हर समुदाय की ओर से अपने-अपने “हक़” और “हिस्सेदारी” के दावे पर चर्चा तेज़ हो चुकी है।कई संभावित उम्मीदवार भी आरक्षण को लेकर सबसे अधिक बेचैन दिखाई दे रहे हैं। कुछ लोग पहले ही जनसम्पर्क शुरू कर चुके हैं, लेकिन यह आशंका भी व्यक्त कर रहे हैं कि यदि सीट किसी अन्य वर्ग में चली गई तो उनकी तैयारी बेकार हो जाएगी। इस वजह से कई दावेदार दोहरी रणनीति बना रहे हैं। एक तरफ आरक्षण के संभावित स्वरूप को समझने की कोशिश, और दूसरी तरफ मतदाताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराना।

लोग यह कहते सुने जा रहे हैं, “तारीख बाद में आएगी, लेकिन सीट किस वर्ग की होगी, यह सबसे बड़ा सवाल है।”आरक्षण को लेकर गांवों में एक और दिलचस्प स्थिति दिखाई दे रही है। कुछ ग्रामीण पुराने रिकॉर्ड, पिछले चुनावों की सूचियाँ और जनगणना के अनुपात के आधार पर यह अनुमान लगाने में जुटे हैं कि इस बार किस वर्ग की सीट मजबूत संभावना में है।

वहीं कुछ लोग जिला प्रशासन की पिछली आरक्षण नीति को आधार बनाकर अलग तरह के दावे कर रहे हैं। कई गाँवों में पंचायत भवन और चौपाल चर्चा के केंद्र बने हुए हैं, जहाँ लोग आरक्षण चक्र की गणना तक करते दिखाई दे रहे हैं।महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को लेकर भी गाँवों में अलग उत्साह है। कुछ जगह महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए लोग यह चाहते हैं कि इस बार सीट महिला वर्ग के लिए आरक्षित हो, ताकि गाँव में नई नेतृत्व क्षमता उभरकर सामने आए।

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वहीं, कई पुरुष उम्मीदवार आशंका में हैं कि कहीं सीट महिला वर्ग में चली गई तो वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। लेकिन कुछ दावेदार ऐसे भी हैं, जो कह रहे हैं—“सीट महिला की हो या पुरुष की, नामांकन तो परिवार से ही होगा।”कुल मिलाकर, तिथि घोषित न होने के बावजूद आरक्षण को लेकर गाँवों में सबसे अधिक राजनीतिक हलचल है। हर वर्ग अपने को योग्य और हकदार बताने में जुटा है।

उम्मीद की जा रही है कि जैसे ही आरक्षण सूची जारी होगी, चुनावी माहौल अचानक से और तेज़ हो जाएगा क्योंकि कई दावेदार मैदान में उतरेंगे और कई को पीछे हटना पड़ेगा। इस समय गाँव की स्थिति बस इतनी है चुनाव की तारीख से ज़्यादा, सीट के आरक्षण ने राजनीति में हलचल मचा रखी है और प्रधान प्रत्यासी लोगों का बेचैनी और उत्सुकता दोनों बढ़ गया है।

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