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वाराणसी

पेरिस से बुआ की अस्थि लेकर काशी पहुंचे तेनजीन

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बुआ की आखिरी इच्छा पूरी करने पेरिस से काशी पहुंचे तेनजीन

वाराणसी का शिक्षा स्तर मेरी मां के लिए हमेशा महत्वपूर्ण था, यही वजह थी कि उन्होंने मुझे 9 साल तक दार्जिलिंग के सरकारी स्कूल में पढ़ने भेजा। जब मैं पेरिस गया तो वहां के बच्चों से कहीं ज्यादा शिक्षित महसूस कर रहा था। यह बात पेरिस में रहने वाले तेनजीन ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताई। तेनजीन ने बताया कि उनकी मां और बुआ को वाराणसी बहुत पसंद था और 11 साल पहले पूरा परिवार वाराणसी में बोट बुक कर जन्मदिन मनाने आया था।

तभी से उन्हें वाराणसी की गलियां और लोग काफी आकर्षित करने लगे थे। उनकी बुआ की आखिरी इच्छा थी कि उनकी अस्थियों को वाराणसी में विसर्जित किया जाए और अब वह अपने बुआ का अस्थि कलश लेकर वाराणसी आए हैं।

तेनजीन ने हिंदी बोलने के सवाल पर कहा कि उनकी मां का मानना था कि भारत में शिक्षा की गुणवत्ता बहुत अच्छी है इसलिए उन्होंने दार्जिलिंग के बोर्डिंग स्कूल में उनका एडमिशन कराया।

कक्षा 9 तक की पढ़ाई के दौरान उन्होंने हिंदी सीखी। वह मानते हैं कि भारत में शिक्षा बहुत बेहतरीन है और जब वह यहां से पढ़कर अपने देश लौटे तो वहां के बच्चों से कहीं अधिक ज्ञान उनके पास था।

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काशी के बारे में तेनजीन ने बताया कि यहां से उनका गहरा जुड़ाव है। उन्होंने यहां के लोगों को बहुत अच्छा पाया और घाटों की सुंदरता ने उन्हें काफी प्रभावित किया। 11 साल पहले काशी आने पर मंदिर का स्वरूप अलग था लेकिन अब वह तस्वीरों में देखकर देख चुके हैं कि मंदिर बहुत खूबसूरत बन चुका है। वह अब मंदिर के अंदर जाकर इसे और करीब से देखने के लिए उत्साहित हैं।

इसके बाद वह सारनाथ घूमने और गंगा आरती में भाग लेने का भी कार्यक्रम बनाकर आए हैं। तेनजीन ने बताया कि नवमी के बाद वह अपने माता-पिता के पास पेरिस लौट गए और आजकल वह मल्टी-लेवल कंपनी में अकाउंटेंट का काम करते हैं। बचपन से ही वह अपनी बुआ के पास रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करते आए हैं।

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