धर्म-कर्म
पुत्र के दीर्घायु: के लिए महिलाएं करती हैं जीवत्पुत्रिका जिउतिया व्रत

रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
वाराणसी। हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष यानी पितृ पक्ष के अंतर्गत अष्टमी तिथि को जीवत्पुत्रिका जिउतिया व्रत मनाया जाता है ।
वस्तुतः जो कि इस वर्ष 06 अक्टूबर शुक्रवार को मनाया जाएगा,जिउतिया व्रत (जितिया) व्रत
इस व्रत की शुरुआत सप्तमी तिथि से नहाय-खाय के साथ ही प्रारंभ हो जाती है और अष्टमी तिथि को व्रत रहते है नवमी को पारण के साथ इसका समापन होता है।
धर्मसिंधु पेज न.१६६
भविष्य पुराण के अनुसार — आश्विन कृष्ण अष्टमी जीवित्पुत्रिका ………
*ईषे मास्यसिते पक्षे चाष्टमी या तिथि भवेत्।*
*पुत्रसौभाग्यदा स्त्रिणाम् ख्याता सा जीवपुत्रिका।*
*शालीवाहनराजस्य पुत्रो जिमूतवाहन:।*
*तश्याम् पूज्य स नारिभी पुत्रसाभाग्यलिप्सया।।”*
यह अष्टमी प्रदोष व्यापीनी ग्राह्य है
*प्रदोष समये स्त्रिभी:पूज्यो जीमुतवाहन:।*
*पुष्करिणीम् विधायाथ प्रांगणे चतुरस्रिकाम्।।*”
विष्णु धर्मोत्तर के अनुसार पूर्व दिन हीं व्रत करें अष्टमी समाप्त होने पर पारण करें।
*पूर्वेद्युपरेद्यूर्वा प्रदोषे यत्र चाष्टमी।*
*तत्र पूज्य सदास्त्रिभी राजा जीमुतवाहन:।*
महिलाएं अपने पुत्र की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं।
इस दिन महिलाएं पूरे दिन और रात के लिए निर्जला उपवास रखती हैं।
पुत्र की लंबी आयु के लिए किया जाने वाला जिउतिया व्रत इसे जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया भी कहा जाता है।
अपने पुत्र की लंबी और स्वस्थ्य जीवन के लिए कामना करती हैं।
उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि इस व्रत का महाभारत काल से भी जुड़ाव है।
कथा के अनुसार जब अश्वथामा ने पांडवों के सोते हुए सभी बेटों और अभिमन्यु के अजन्मे बेटे को मार दिया था, उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन के पोते को गर्भ में ही जीवित कर दिया।
इसी वजह से अर्जुन के इस पोते का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और मान्यता के अनुसार यही कारण है कि माताएं अपने बेटे की लंबी उम्र के लिए यह व्रत करती हैं।
जिउतिया व्रत की विधि
जीवित्पुत्रिका व्रत के लिए उपवास शुरू करने से पहले सुबह ही कुछ खाया-पिया जा सकता है। सूर्योदय होने से पहले महिलाएं पानी वगैरह ग्रहण करती हैं लेकिन इसके बाद कुछ भी खाने या पीने की मनाही रहती है। खास बात ये भी है कि इस व्रत से पहले केवल मीठा भोजन ही किया जाता है।
इसके बाद तड़के गंगा स्नान और पूजन का महत्व है। व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है।
पारंपरिक तौर पर बिहार-यूपी आदि जगहों पर दाल-भात, झिंगली, साग आदि खाकर व्रत का पारण किया जाता है।