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पियरिया पोखरी की चमत्कारी शिव-मां काली

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वाराणसी के तेलियाबाग स्थित पियरिया पोखरी में श्री सिद्धपीठ चन्द्रमौलेश्वर भगवान शंकर एवं महामाया खप्परवाली मां काली का मंदिर भक्तों की आस्था का अद्भुत केंद्र है। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु अपने को धन्य मानते हैं और मां के दर्शन से अभिभूत होकर जीवन की सार्थकता को अनुभव करते हैं। सुबह-शाम होने वाली भजन-आरती के समय वातावरण में ऐसी दिव्यता छा जाती है कि भक्त झूम-झूमकर मां की ज्योति में लीन हो जाते हैं। माना जाता है कि इस स्थान का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी वरुणा के मध्य बताया गया है।

भक्त चन्द्रपीठाधीश्वर स्वामी पीताम्बरा बाबा के अद्भुत चमत्कार और मां खप्परवाली की असीम कृपा से यहां दिन-रात श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। कहते हैं कि जो भक्त पहली बार रोते हुए यहां आते हैं, मां के दर्शन मात्र से उनके जीवन की समस्त बाधाएं समाप्त हो जाती हैं और वे मां के चरणों में स्वयं को अर्पित कर देते हैं। यही कारण है कि कई भक्त यहां जीवन भर साधना में लीन रहकर मुक्ति की प्राप्ति करते हैं।

स्वामी पीताम्बरा बाबा, जो इस सिद्धपीठ के अधिष्ठाता हैं, मां खप्परवाली की कृपा से श्मशान की खाक को अपने तप का आधार मानते हुए काशी में इस मूल तपोस्थली को स्थापित किए। यहां मां काली की मूर्ति से प्रज्ज्वलित दिव्य ज्योति ऐसी प्रतीत होती है मानो असंख्य सूर्यों की किरणें फीकी पड़ गई हों। यह अलौकिक तेज श्रद्धालुओं के हृदय को आत्मविभोर कर उन्हें भक्ति और साधना की ओर प्रेरित करता है।

मां खप्परवाली के इस मंदिर में शारदा मैया, नवदुर्गा, बाबा गोरखनाथ, श्रीरामकृष्ण परमहंस, श्रीरामदरबार, दस महाविद्याएं और श्री स्वामी दत्तात्रेय जैसी मूर्तियों का भी दर्शन होता है। इससे श्रद्धालुओं का आनंद और भी बढ़ जाता है। पीताम्बरा बाबा की तपस्थली पहले हरिश्चन्द्र घाट, केदारघाट, मणिकर्णिका घाट, बटुक भैरव मंदिर, रामनगर की मां लक्ष्मी और पंचगंगा घाट पर रही। अब उन्होंने गोरखपुर के नीमाघाट में भी अपनी तपस्थली स्थापित कर वहां के भक्तों को मां के दर्शन का सौभाग्य प्रदान किया है।

कहावत है कि “मानो तो देव, नहीं तो पत्थर।” मां काली के प्रति सच्ची आस्था रखने वाले भक्तों को उनका साक्षात् दर्शन भी प्राप्त होता है। ऐसा ही सौभाग्य स्वामी पीताम्बरा बाबा को मिला, जिन्हें मां ने अपने आशीर्वाद से कृतार्थ किया। लगभग 26 वर्षों से वे अपने निवास के एक हिस्से में मां काली को स्थापित कर दिन-रात उनकी सेवा में लगे हुए हैं। बाबा सुबह-शाम पूजन और हवन करते हैं तथा केवल तीन-चार घंटे ही विश्राम करते हैं। इसके बावजूद मां के आशीर्वाद से वे स्वस्थ और ऊर्जावान बने रहते हैं।

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मान्यता है कि लगातार 21 रविवार दीपदान करने वाले भक्तों को स्वामी पीताम्बरा बाबा की ओर से मां के आशीर्वादस्वरूप “रक्षा कवच” प्रदान किया जाता है। यह कवच उन्हें हर प्रकार की विपत्ति से बचाता है। यही कारण है कि बाबा के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्य भी मां की सेवा में निरंतर संलग्न रहते हैं।

कहा जाता है कि मां काली अपने भक्तों को स्वयं बुलाती हैं। जिनके मन में सच्ची आस्था होती है, वे किसी न किसी दिन उनके दरबार में पहुंच ही जाते हैं। अनेक भक्तों को मां ने प्रत्यक्ष दर्शन दिए और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण की हैं। ईश्वर सर्वशक्तिमान है, परंतु कुछ देवशक्तियों को उन्होंने विशेष सामर्थ्य दी है, जिनके माध्यम से सच्चे श्रद्धालु अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर पाते हैं। मां काली भी ऐसी ही शक्तियों में से एक हैं।

यही कारण है कि कहा गया है—”खुदी को कर बुलन्द इतना कि बन्दे से खुदा पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है।” अर्थात् भक्ति और आस्था में इतना डूब जाओ कि वह शक्ति स्वयं तुमसे पूछे कि तुम क्या चाहते हो।

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