गाजीपुर
परंपरा और आस्था का केंद्र है सिद्धपीठ हथियाराम मठ

सादात (गाजीपुर)। देश की प्रसिद्ध मठों में से एक, सिद्धपीठ हथियाराम मठ, लगभग 700 वर्ष पुरानी परंपरा का प्रतीक है। इसका प्रमाण सामान्य जनश्रुति, प्राचीन हस्तलिपि, लिखित ग्रंथ और भारतीय इतिहास में मिलता है। इस सिद्धपीठ पर आसीन संत-यति अपने गुरु परंपरा में दत्तात्रेय, शुकदेव और शंकराचार्य से जुड़ते हैं।
सिद्धपीठ की गद्दी क्रम की परंपरा सिंह श्याम यति से मानी जाती है। यह वही मठ है, जहाँ से पांच महामंडलेश्वर निकल चुके हैं।
जनपद मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर पश्चिम-उत्तर में बेसो नदी की गोद में स्थित यह मठ पश्चिम-उत्तर-पूर्व दिशा से बेसो नदी से गिरी हुई भूमि पर बसा है। यहाँ स्थापित वृद्धाम्बिका देवी या ‘बुढ़िया माई’ का चौरा श्रद्धा, विश्वास और आस्था का केंद्र है। कहा जाता है कि माता की पूजा सुमेधा ऋषि करते थे। माता असहायों और निर्बलों को बल प्रदान करने वाली मानी जाती हैं।
माना जाता है कि यहाँ लकवा ग्रस्त रोगी आकर बुढ़िया माई के दर्शन, पूजा-पाठ और हवन कुंड की भस्म से लेपन कर कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो जाते हैं। हथियाराम मठ में सिद्धिदात्री भगवती अष्टभुजा देवी का भव्य मंदिर, कैलाश भवन और गुरुकुल भवन स्थित हैं।
मठ परिसर में गौशाला भी है, जहाँ दो दर्जन से अधिक गाय आज भी रखी हैं। मठ से लगभग 100 मीटर पश्चिम में बाबा सिद्धेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है, जहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। मठ से लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में पेड़ों के झुरमुट में परम पूज्य गुरुदेव बालकृष्ण यति का निवास ‘विश्वनाथ मंगल भवन’ स्थित है।
इतिहास के अनुसार संवत् 1400 के करीब साढ़े 600 वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में घना जंगल था। यहाँ आदि संत मुरार नाथ तपस्या करते थे। तपस्या के दौरान उन्हें बुढ़िया माई की चौरी का ज्ञान हुआ और उन्होंने इसका मंदिर बनवाने का संकल्प लिया। इसी कारण यहाँ बुढ़िया माई का मंदिर स्थापित हुआ और इस स्थान को हथियाराम नाम मिला।
आध्यात्मिक जगत में इसका विशेष महत्व है कि मोक्ष प्रदायिनी माता गंगा द्वारा प्रदत्त कटोरा आज भी यहाँ मौजूद है। कहा जाता है कि जब तक यह कटोरा इस पीठ पर रहेगा, तब तक इसकी कीर्ति विश्वभर में फैलेगी। इस पीठ से पांच महामंडलेश्वर हुए हैं और वर्तमान में भी इसका गौरव बना हुआ है।
अब तक इस मठ पर कुल 26 महंत हुए हैं, जिनमें वर्तमान पीठाधीश्वर भवानी नंदन यति हैं। सबसे पहले हथियाराम यति ने इस परंपरा की नींव रखी थी। इसके बाद सिंह श्याम यति, मुरार नाथ यदि, परशुराम यदि, मधुकर यदि, वामन यति, बैराग्य यति, गौतम यति, गोविंद यति, वीरभद्र यति, कमल यति, भीष्म यति, अगस्त यति, अपार नाथ यति, त्रिशूल यति, घूरण यति, इंद्रजीत यति, रघुवंश यति, हरवंश यति, देवी दयाल यति, राम शुभग यति, नृसिंह यति, देवनाथ यदि, विश्वनाथ यति और बालकृष्ण यति शामिल हैं।
सिद्धपीठ हथियाराम मठ आज भी आस्था, धर्म और संस्कृति का अनुपम केंद्र बना हुआ है, जहाँ भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ आते हैं।