वाराणसी
नाग पंचमी के दिन आठ नाग देवताओं की होती है पूजा

रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
वाराणसी। हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष नाग पंचमी का त्योहार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन 8 नागों की पूजा की जाती है. भगवान शिव के गले में जो नाग रहता है उसका नाम वासुकि है।
नागपंचमी पर वासुकि नाग, तक्षक नाग और शेषनाग की पूजा का विधान है.
वस्तुतः इस वर्ष नागपंचमी महापर्व श्रावण मास में 21 अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा।
नाग पूजा
नाग पूजा पूजा करने के लिए नाग चित्र या मिट्टी की सर्प मूर्ति को लकड़ी की चौकी के ऊपर रखकर फिर हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाकर नाग देवता की पूजा की जाती है. उसके बाद कच्चा दूध, धान का लावा, घी, चीनी मिलाकर अर्पित किया जाता है. पूजा पूरी करने के बाद आरती उतारी जाती है।
अंत में नाग पंचमी की कथा सुनी जाती है।
नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं।
इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप व दीप एवं गाय के गोबर से पूजन करें, तथा सफेद मिठाई एवं देश काल के अनुसार दुध एवं धान का लावा का भोग लगाएं।
तत्पश्चात प्रार्थना करें।
नागपंचमी पर नाग देवताओं में प्रमुख माने जाने वाले नाग देवताओं का स्मरण करना चाहिए।
नाग देवताओं के पवित्र स्मरण के साथ ही दिन का आरंभ करना चाहिए।
विशेषकर जब प्रत्यक्ष नाग देवता की पूजन कर रहे हों, तब इनका नाम लेना शुभ होता है, साथ ही इससे कालसर्प योग में भी शांति मिलती है.
प्रार्थना के बाद नाग गायत्री का जप करें
ॐ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।
उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र, शिवपुराण,के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं।
ऐसे में इस दिन अष्ट नागों की पूजा प्रधान रूप से की जाती है।
नाग पंचमी से जुडी कथाएं, हिन्दू पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियाँ थी। मान्यता यह है कि उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी से दैत्य उत्पन्न हुए, परन्तु उनकी जो तीसरी पत्नी कद्रू थी, जिनका ताल्लुक नाग वंश से था, उन्होंने नागों को उत्पन्न किया।
पुराणों के मतानुसार सर्पों के दो प्रकार बताए गए हैं — दिव्य और भौम । दिव्य सर्प वासुकि और तक्षक आदि हैं।
इन्हें पृथ्वी का बोझ उठाने वाला और प्रज्ज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी बताया गया है।
वे अगर कुपित हो जाएँ तो फुफकार और दृष्टिमात्र से सम्पूर्ण जगत को दग्ध कर सकते हैं।
इनके डसने की भी कोई दवा नहीं बताई गई है।
परन्तु जो भूमि पर उत्पन्न होने वाले सर्प हैं, जिनकी दाढ़ों में विष होता है तथा जो मनुष्य को काटते हैं उनकी संख्या अस्सी बताई गई है।
अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापदम, शंखपाल और कुलिक — इन आठ नागों को सभी नागों में श्रेष्ठ बताया गया है।
इन नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं। अनन्त और कुलिक — ब्राह्मण; वासुकि और शंखपाल — क्षत्रिय; तक्षक और महापदम — वैश्य; व पदम और कर्कोटक को शुद्र बताया गया है।
पौराणिक कथानुसार जन्मजेय जो अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे; उन्होंने सर्पों से बदला लेने व नाग वंश के विनाश हेतु एक नाग यज्ञ किया क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी।
नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था। जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी ,और तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया।
मान्यता है कि यहीं से नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हुई।