वाराणसी
दीपावली पर बढ़ी कोलकाता की मूर्तियों की मांग

बाजारों में सज गई गणेश और लक्ष्मी जी की मूर्तियां
वाराणसी। दीपावली की तैयारियों का उल्लास अब काशी की गलियों में दिखने लगा है। बाजारों में लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां सज चुकी हैं, और मूर्तिकार उन्हें अंतिम रूप देने में जुटे हैं। खास बात ये है कि इस बार कोलकाता की मूर्तियों की मांग काफी बढ़ी है और करीब पांच से सात करोड़ रुपये का कारोबार होने की संभावना है।
लक्सा के दिनेश प्रजापति जो पिछले 45 वर्षों से लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बेच रहे हैं बताते हैं कि दस साल पहले जो मूर्तियां 50 रुपये में मिलती थीं, आज उनके दाम 500 रुपये तक पहुंच चुके हैं।
अब गंगा मिट्टी से बनी सिंदूरी मूर्तियों के मुकाबले रंग-बिरंगी मूर्तियों की ज्यादा मांग हो रही है।अंबिया मंडी की वृद्धा चंपा देवी बताती हैं कि लोग अब कोलकाता की मिट्टी से बनीं प्रतिमाओं को ज्यादा पसंद कर रहे हैं।
इन मूर्तियों की विशेषता है कि एक नजर में ही ये जीवंत प्रतीत होती हैं। वहीं, चुनार की बनी मूर्तियां भी खरीदारों को लुभा रही हैं।
बलुआबीर के सोहन प्रजापति बताते हैं कि वाराणसी में बनने वाली शुद्ध गंगा मिट्टी और सिंदूर से तैयार की गई लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की मांग दिल्ली, मुंबई, बिहार और नेपाल तक है। इनकी कीमतें 25 रुपये से 2500 रुपये तक हैं, जबकि दुर्गा पूजा के बाद से ही इनकी बिक्री शुरू हो जाती है।
खासकर धनतेरस से पांच दिन पहले मूर्तियां बाजार में पहुंच जाती हैं जिनकी कीमतें 50 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक होती हैं।मूर्तियों के दाम में विविधता है जैसे, कमल आसन वाली मूर्ति 80-100 रुपये, बाईं तरफ सूंड वाली मूर्ति 100-500 रुपये, और दाईं तरफ सूंड वाली मूर्ति 100-400 रुपये में उपलब्ध हैं। शंख वाली मूर्ति 50-100 रुपये में मिलती है जबकि कोलकाता की मूर्तियों की कीमतें 45 रुपये से लेकर 4800 रुपये तक हैं।
काशी विद्वत परिषद के प्रो. रामनारायण द्विवेदी का कहना है कि दीपावली पर मां लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा करना जरूरी है। लक्ष्मीजी जहां धन-संपदा की स्वामिनी हैं वहीं श्रीगणेश बुद्धि और विवेक के प्रतीक माने जाते हैं।