चन्दौली
गोवर्धन पूजा : श्रीकृष्ण की करुणा, कृतज्ञता और प्रकृति-सम्मान का पर्व

चंदौली। दीपोत्सव पर्व के एक दिन बाद श्रद्धा और भक्ति से मनाई जाने वाली गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत करुणा और प्रकृति-सम्मान का प्रतीक मानी जाती है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि 21 अक्टूबर की सायंकाल से प्रारंभ होकर 22 अक्टूबर की संध्या तक रहेगी।
श्रीकृष्ण ने बचाया गोकुल
पौराणिक कथा के अनुसार, जब इन्द्र के प्रकोप से गोकुल पर संकट आया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठ उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की थी। कहा जाता है कि इन्द्र के अहंकार को तोड़ने के लिए बालक कृष्ण ने लोगों को यह समझाया कि वर्षा केवल इन्द्र की कृपा से नहीं होती, बल्कि गोवर्धन पर्वत, गायें और प्रकृति ही हमारी असली पालनहार हैं।
कृष्ण की बात मानकर गोकुलवासियों ने इन्द्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इससे क्रोधित होकर इन्द्र ने मूसलाधार वर्षा करवाई, परंतु श्रीकृष्ण ने सात दिनों तक पर्वत उठाए रखा और गोकुल की रक्षा की। सातवें दिन इन्द्र ने अपनी गलती स्वीकार कर भगवान के चरणों में शीश झुका दिया।
शुभ मुहूर्त और पूजा-विधि
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर बुधवार को की जाएगी। पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 6:26 से 8:42 बजे तक तथा सायंकालीन मुहूर्त 3:29 से 5:44 बजे तक रहेगा।
इस दिन श्रद्धालु स्नानादि के पश्चात आंगन को मिट्टी और गोबर से लीपकर शुद्ध करते हैं। फिर गोबर या मिट्टी से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसके चारों ओर गाय, बछड़े, गोप-गोपिकाओं की प्रतिकृतियाँ सजाई जाती हैं। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण, गोवर्धन पर्वत, गाय और अन्नकूट की पूजा की जाती है।
पूजन में हल्दी, रोली, अक्षत, पुष्प, तुलसीदल, दीपक, धूप, गंगाजल, मौली, मिठाई और गाय के लिए चारा जैसी सामग्री का उपयोग होता है। पूजा के बाद ‘छप्पन भोग’ अर्पित किया जाता है और प्रसाद स्वरूप वही अन्नकूट सभी में वितरित किया जाता है। महिलाएँ इस अवसर पर अन्नकूट का आयोजन कर अपने भाइयों की दीर्घायु की कामना करती हैं।
वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व
गोवर्धन पूजा न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस समय वर्षा ऋतु समाप्त होकर शरद ऋतु का प्रारंभ होता है। मिट्टी, गोबर और दीपक का प्रयोग वातावरण को शुद्ध करता है। गोबर में पाए जाने वाले जैव-सक्रिय तत्व और दीपक की लौ से निकलने वाली ऊष्मा वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाती है।
यह पर्व भारतीय संस्कृति का जीवंत दर्शन कराता है। यह हमें सिखाता है कि अहंकार से ऊपर उठकर कृतज्ञता और प्रकृति-सम्मान का भाव जीवन में आवश्यक है।
लोक परंपरा और श्रद्धा
भारत के विभिन्न राज्यों — राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश — में यह पर्व लोक-परंपराओं के अनुरूप मनाया जाता है। विशेषकर ब्रजभूमि में आज भी लाखों श्रद्धालु गोवर्धन परिक्रमा करते हैं।
गोवर्धन पूजा हमें यह संदेश देती है कि जब तक हम धरती, गाय और अन्न के प्रति आभारी रहेंगे, तब तक जीवन के किसी भी संकट की वर्षा हमें डिगा नहीं सकती। यह पर्व वास्तव में भक्ति, कृतज्ञता और पर्यावरण संरक्षण का अनोखा संदेश देने वाला दिव्य उत्सव है।