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गोरखपुर

गोरखपुर में चुपचाप हुआ बड़ा खेल, कोर्ट के आदेश की उड़ाई गई धज्जियां

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गोरखपुर जनपद के दक्षिणांचल स्थित गगहा थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम ढरसी से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां दीवानी न्यायालय के स्थगन आदेश और एसडीएम के निर्देशों को खुलेआम नजरअंदाज कर दिया गया। गोरखपुर: जनपद के दक्षिणांचल स्थित गगहा

थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम ढरसी से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां दीवानी न्यायालय के स्थगन आदेश और एसडीएम के निर्देशों को खुलेआम नजरअंदाज कर दिया गया। आरोप है कि स्थानीय राजस्व व पुलिस विभाग की मिलीभगत से स्थगन प्राप्त भूमि पर दबंगई के बल पर पक्का निर्माण करवा दिया गया, जिससे न्यायिक व्यवस्था और प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर प्रश्न उठ खड़े हुए हैं।

कोर्ट के आदेश के बावजूद निर्माण कार्य

मामला ग्राम ढरसी के आराजी नंबर 95 से जुड़ा है, जो कमला तिवारी पुत्र रामकिंकर तिवारी के नाम खतौनी में दर्ज है। इसके बगल में गांव के ही एक प्रभावशाली व्यक्ति विनोद तिवारी का मकान स्थित है। दीवानी न्यायालय, बांसगांव में मुकदमा संख्या 755/21 (कमला बनाम विनोद) विचाराधीन है।
इस मामले में न्यायालय ने कमला तिवारी के पक्ष में स्थगन आदेश पारित किया था। बावजूद इसके, विनोद तिवारी ने कथित रूप से पुलिस और राजस्व कर्मियों की मिलीभगत से जबरन भूमि पर पक्का निर्माण करवा लिया।

प्रशासन की चुप्पी और पीड़ित की गुहार

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कमला तिवारी ने इस प्रकरण को लेकर IGRS पोर्टल, एसडीएम और सीओ बांसगांव को कई बार शिकायत पत्र दिया। स्थगन आदेश की प्रति संलग्न कर निर्माण रोकने की अपील भी की, लेकिन न प्रशासन ने कोई कार्रवाई की और न ही निर्माण को रोका गया।

स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता और चुप्पी ने यह दर्शा दिया कि दबंगों के खिलाफ कार्रवाई करना उनकी प्राथमिकता में नहीं है।

क्षेत्र में गूंजे सवालः क्या अब कोर्ट के आदेश स्थानीय लोगों में इस घटनाक्रम को लेकर भारी रोष है। लोग पूछ रहे हैं “जब न्यायालय का आदेश ही नहीं माना जाएगा तो आम आदमी न्याय की उम्मीद किससे करे?” “क्या दबंगों के आगे प्रशासन ने घुटने टेक दिए हैं?” यह मामला पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। लोगों में आक्रोश है कि कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर कुछ लोग अपनी ताकत के बल पर प्रशासन को भी कठपुतली बना रहे हैं

प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल

गगहा थाना और संबंधित राजस्व निरीक्षक की भूमिका पर अब सवाल उठ रहे हैं। क्या ये अधिकारी जानबूझकर दबाव में काम कर रहे हैं या फिर मिलीभगत का हिस्सा हैं। अब देखना यह है कि शासन इस पर क्या रुख अपनाता है और क्या पीड़ित कमला तिवारी को न्याय मिल पाएगा या नहीं। गोरखपुर के इस मामले ने न्याय और प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। अब पूरे क्षेत्र की निगाहें शासन-प्रशासन पर टिकी हैं कि क्या वो दबंगई के आगे झुकेगा या कानून का राज कायम करेगा।

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