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अपराध

गैंगरेप के तीसरे आरोपी सक्षम पटेल को 11 महीने बाद जमानत

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पीड़ित छात्रा छुट्टी लेकर घर गयी

वाराणसी। आईआईटी-बीएचयू में हुए गैंगरेप मामले के तीसरे आरोपी सक्षम पटेल को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है। 11 महीने बाद उसे रिहाई मिली है। सोमवार को कोर्ट के आदेश पर सक्षम पटेल को जेल से रिहा किया गया। पुलिस ने सक्षम पटेल को पेशेवर अपराधी माना था, लेकिन हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ पेश किए गए अभियोजन पक्ष के तर्कों को कमजोर माना और जमानत दे दी। 

इससे पहले गैंगरेप के अन्य आरोपी कुणाल पांडे और आनंद उर्फ अभिषेक चौहान को भी जमानत मिल चुकी थी। तीनों आरोपियों की जमानत याचिका पहले वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट से खारिज की जा चुकी थी, लेकिन हाईकोर्ट में उनकी याचिका मंजूर हो गई। 

सक्षम पटेल को जमानत मिलते ही पीड़ित छात्रा ने सभी आरोपियों की जेल से रिहाई पर सवाल उठाए। इसके बाद वह कॉलेज से छुट्टी लेकर घर चली गई है। छात्रा का कहना था कि उसे आरोपियों के बार-बार जेल से बाहर होने से मानसिक तनाव हो रहा है। 

गैंगरेप मामले की जांच और चार्जशीट
गैंगरेप की घटना के 60 दिन बाद पुलिस ने 30 दिसंबर 2023 को तीनों आरोपियों को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर करते हुए गैंगरेप के अलावा गैंगस्टर एक्ट भी लगाया। इसमें CCTV फुटेज, व्हाट्सएप चैट और पीड़िता के बयान के आधार पर आरोपियों के खिलाफ ठोस साक्ष्य प्रस्तुत किए गए थे। 

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कोर्ट में जमानत याचिकाओं की स्थिति
जुलाई 2023 में तीनों आरोपियों ने जमानत याचिका दायर की थी, लेकिन अभियोजन पक्ष के विरोध के बाद उनकी याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं। इसके बाद सक्षम पटेल ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए अपील की जिसे 16 सितंबर 2024 को खारिज कर दिया गया। फिर उन्होंने डबल बेंच में अपील की और अंततः जमानत मिल ही गई। 

गैंगरेप के तीनों आरोपी –


पीड़ित छात्रा ने कोर्ट में बयान दिया था कि उसकी परीक्षाएं चल रही हैं और बार-बार कोर्ट आना उसके लिए परेशानी का कारण बन रहा है। उसने वर्चुअल सुनवाई की मांग की, ताकि उसे आरोपियों से आमना-सामना न करना पड़े। 

पीड़िता ने 2 नवंबर को पुलिस को शिकायत दी, जिसमें उसने बताया कि 1 नवंबर की रात वह अपने हॉस्टल से बाहर जा रही थी, तभी तीन आरोपियों ने उसे जबरदस्ती रोक लिया और गन पॉइंट पर दुष्कर्म किया। घटना के बाद पीड़िता ने किसी तरह खुद को छुड़ाया और अपने हॉस्टल लौट आई। 

 
पुलिस ने इस मामले की जांच के लिए कुल 225 CCTV फुटेज की समीक्षा की और 6 टीमों का गठन किया। आरोपियों ने घटना के बाद मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में शरण ली थी, जिससे उनकी गिरफ्तारी में देरी हुई। 60 दिन बाद तीनों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था। 

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