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कोलकाता कांड – सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल टास्क फोर्स का किया गठन, ममता सरकार को लगाई फटकार
कोलकाता/नई दिल्ली। कोलकाता के सरकारी अस्पताल में महिला ट्रेनी डॉक्टर से हुए दुष्कर्म और हत्या के मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने घटना पर चिंता जाहिर करते हुए ममता सरकार, बंगाल पुलिस और अस्पताल प्रशासन पर कई सवाल खड़े किए। सीजेआई ने कहा कि जैसे-जैसे महिलाओं की संख्या कार्यबल में बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे महिलाओं की सुरक्षा की चिंता बढ़ती जाएगी। हम अगले दुष्कर्म का इंतजार नहीं कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को सीबीआई स्टेटस रिपोर्ट तलब करने का आदेश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 22 अगस्त को होगी। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम अदालत का सहयोग करना चाहते हैं। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से पेश हुए हैं।
सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, आठ सदस्यीय नेशनल टास्क फोर्स का गठन करने जा रहे हैं। टास्क फोर्स में भारत सरकार के होम सेक्रेटरी, स्वास्थ्य मंत्रालय के सेक्रेटरी, कैबिनेट सेक्रेटरी और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग राष्ट्रीय परीक्षक बोर्ड के चेयरपर्सन को भी शामिल किया जाएगा।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि, 10 डॉक्टर्स की एक टास्क फ़ोर्स गठित की जा रही है। ये सभी स्टेक होल्डर्स से परामर्श करेंगे। इसमें एक राष्ट्रीय सहमति विकसित की जानी चाहिए। इसलिए निम्नलिखित के साथ एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया गया है। टास्क फोर्स 3 सप्ताह में अंतरिम रिपोर्ट देगी, जबकि 2 महीने के भीतर फाइनल रिपोर्ट सौंपेगी।
ममता सरकार और कोलकाता पुलिस सवालों के कटघरे में –
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आखिर प्रिंसिपल क्या कर रहे थे ? पुलिस ने क्राइम सीन को प्रोटेक्ट क्यों नहीं किया ? एफआईआर दर्ज करने में देरी क्यों हुई ? कोर्ट ने कहा कि आरजी कर अस्पताल में डॉक्टरों की चल रहे विरोध प्रदर्शन को राज्य बल का उपयोग कर जबरदस्ती बंद न कराया जाए। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह सिर्फ एक मर्डर का मामला नहीं है। कोर्ट ने डॉक्टरों की सुरक्षा की चिंता भी जताई है।
वहीं, सोशल मीडिया पर पीड़िता की पहचान उजागर करने पर कोर्ट ने चिंता भी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा,”अगर महिलाएं काम पर नहीं जा सकतीं और सुरक्षित नहीं रह सकतीं तो हम उन्हें बुनियादी समानता से वंचित कर रहे हैं।” सीजेआई ने पूछा कि क्या यह सच है कि पीड़ित परिवार को बॉडी नहीं देखना दिया गया। इसपर पश्चिम बंगाल सरकार के वकील ने कहा कि ऐसे आरोप सही है।
कोर्ट ने पूछा कि अभिभावक को बॉडी सौंपने के साढ़े तीन घंटे के बाद एफआईआर क्यों किया गया। कोर्ट ने इस घटना पर राज्य सरकार की कार्रवाई पर सवाल खड़े किए। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई सख्त सवाल पूछे हैं। कोर्ट ने पूछा कि पीड़िता की पहचान उजागर कैसे हुई? जब 7 हजार लोग अस्पताल में घुसे तब पुलिस वहां क्या कर रही थी ?
टास्क फोर्स समिति सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी रिपोर्ट –
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि टास्क फोर्स चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा, भलाई और अन्य संबंधित मामलों पर विचार करेगी। लिंग आधारित हिंसा को रोकना, इंटर्न, रेजिडेंट, नॉन रेजिडेंट डॉक्टरों के सम्मानजनक कामकाज के लिए राष्ट्रीय योजना तैयार करना होगा। कमेटी इन विषयों पर भी अपनी रिपोर्ट देगी।
डॉक्टरों को क्या-क्या सुविधाएं मिलनी चाहिए –
आपातकालीन कक्ष के क्षेत्रों में अतिरिक्त सुरक्षा की आवश्यकता हो सकती है ?
हथियारों को प्रवेश करने से रोकने के लिए बैगेज स्क्रीनिंग की आवश्यकता है।
यदि कोई व्यक्ति मरीज नहीं है तो उसे एक सीमा से अधिक की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा।
डॉक्टरों के लिए विश्राम कक्ष और डॉक्टरों, नर्सों के आराम करने के लिए लिंग तटस्थ स्थान होना चाहिए। ऐसे क्षेत्रों में बायोमेट्रिक्स और चेहरे की पहचान होनी चाहिए। सभी क्षेत्रों में उचित प्रकाश व्यवस्था, सभी स्थानों पर सीसीटीवी लगाना।
चिकित्सा पेशेवरों के लिए रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक परिवहन।
दुख और संकट से निपटने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन।
संस्थागत सुरक्षा उपायों का तिमाही ऑडिट और आने वाले लोगों के अनुरूप पुलिस बल की स्थापना।
POSH अधिनियम चिकित्सा प्रतिष्ठानों पर लागू होता है, इसलिए ICC का गठन किया जाना चाहिए।
चिकित्सा व्यवसाय की आपातकालीन स्थिति के लिए हेल्पलाइन नंबर होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डॉक्टरों के पास आराम करने के लिए जगह नहीं है। उनके लिए बुनियादी स्वच्छता का ख्याल नहीं रखा जाता है। चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा इकाइयों में सुरक्षा की कमी है। डॉक्टरों को अनियंत्रित रोगियों को संभालने के लिए छोड़ दिया जाता है। अस्पताल में चिकित्सा पेशेवरों के लिए केवल एक सामान्य शौचालय है। उनको शौचालय तक पहुंच के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।