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वाराणसी

कैंट विधायक ने बटुकों संग की गौमाता की आरती, शंकराचार्य बोले – गाय को मिले राष्ट्रीय माता का दर्जा

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वाराणसी में गोपाष्टमी का महापर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। शहर की सभी गोशालाओं में सुबह से ही विशेष तैयारियां की गईं। गोमाताओं का विधिवत स्नान, श्रृंगार और पूजा-अर्चना कर भक्तों ने आशीर्वाद प्राप्त किया।

गोशालाओं में हुआ श्रृंगार और पूजन

सुबह-सुबह गोशालाओं में गायों को स्नान कराकर रंग-बिरंगी चुनरियां और पुष्पमालाएं पहनाई गईं। इसके बाद षोडशोपचार विधि से उनकी पूजा की गई और आरती के पश्चात उन्हें चारा खिलाया गया। इस अवसर पर काशी धर्मसंघ परिसर में विशेष पूजन का आयोजन हुआ, जिसमें संतों, विद्वानों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

विधायक सौरभ श्रीवास्तव ने की आरती

गोपाष्टमी के आयोजन में कैंट विधायक सौरभ श्रीवास्तव भी पहुंचे और बटुकों संग गौमाता की आरती उतारी। उन्होंने कहा कि काशी की संस्कृति में गाय पूजन का विशेष महत्व है। यह परंपरा न केवल धर्म का प्रतीक है, बल्कि लोककल्याण की भावना भी समाहित करती है।

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शंकराचार्य की मांग – गाय को मिले राष्ट्रीय माता का दर्जा

इस अवसर पर धर्मसंघ में उपस्थित शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि गाय भारतीय संस्कृति की आत्मा है और उसे राष्ट्रीय माता का दर्जा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “गाय के बिना सनातन परंपरा अधूरी है, क्योंकि वह सबके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का प्रतीक है।”

गोपाष्टमी की धार्मिक मान्यता

पौराणिक मान्यता के अनुसार, गोपाष्टमी का आरंभ श्रीकृष्ण काल से हुआ। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण को छह वर्ष की आयु में पहली बार गौचारण के लिए भेजा गया था। तभी से इस पर्व को गोमाता की आराधना के रूप में मनाया जाता है।

‘गौसेवा से खुलते हैं मोक्ष के द्वार’

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धर्मसंघ के महामंत्री पंडित जगजीतन पांडेय ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि गाय सर्वसुखदायिनी और कल्याणकारी है। उन्होंने कहा, “गौसेवा से न केवल समृद्धि मिलती है, बल्कि जीवन के समस्त दुखों का नाश भी होता है। गाय पृथ्वी की पालनहार और सृष्टि की आधारशिला है।”

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