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कुतुब मिनार में मौजूद लोहे का ये खंभा माना जाता है जादुई, जानें इससे जुड़े रहस्य
भारत का इतिहास कई ऐसे रहस्यों से भरा हुआ है जिसके बारे में हम हमेशा सोचते तो हैं, लेकिन कभी भी उन्हें पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। ऐसे कईऐतिहासिक स्थान हैं जिनकी जानकारी के लिए वैज्ञानिक भी अटकलें लगाते रहे हैं, लेकिन उनके बारे में कुछ भी साफतौर पर नहीं पता चल पाया है। दिल्ली के कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्स में आज भी एक ऐसा इतिहास छुपा हुआ है। ये है कीर्ति स्तंभ जिसे 1600 सालों से भी पुराना माना जाता है।
इस कीर्ति स्तंभ को लेकर ये भी कहा जाता है कि इसमें कभी भी जंग नहीं लगती। लोहे का बना कोई खंभा इतने सालों से लगातार आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इतिहास के पन्नों में दर्ज इस खंबे को लेकर कई बातें और मान्यताएं हैं जिसके बारे में आज हम आपके अपनी स्टोरी में बात करेंगे।
क्या है इस कीर्ति स्तंभ से जुड़े ऐतिहासिक फैक्ट्स?
फैक्ट्स की मानें तो ये स्तंभ चंद्रगुप्त II के समय मध्यप्रदेश में बनाया गया था। पर ये कब और कैसे मध्यप्रदेश से दिल्ली आया ये राज़ तो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है। ऐतिहासिक फैक्ट्स के अनुसार इस स्तंभ को विष्णु मंदिर से जोड़कर देखा जाता है। इसे ‘विष्णुध्वज’ नाम से भी जोड़ा जाता है जहां विष्णु मंदिर के ध्वज को फहराने के लिए इस स्तंभ का इस्तेमाल किया जाता था।
कभी नहीं लगी इस स्तंभ में जंग-
इस ऐतिहासिक स्तंभ को 1600 सालों में धूल-मिट्टी बन जाना चाहिए था, लेकिन ये अभी तक इसी तरह से खड़ा हुआ है। इतने सालों बाद भी इसमें जंग नहीं लगी है और यही बात इसे खास बनाती है। हालांकि, इसे किस राजा ने बनवाया था इसे लेकर अभी भी इतिहासकारों की अलग राय है, लेकिन फिर भी चंद्रगुप्त के काल से ही इसे जोड़ा जाता है।
इसे क्यों बनवाया गया और इसे बनवाते समय ऐसी किस चीज़ का इस्तेमाल हुआ जिससे इसमें अभी तक जंग नहीं लगी ये एक रहस्य है।
कैसा है इस स्तंभ का डिजाइन?
ये 6 टन से भी ज्यादा भार का स्तंभ 48cm डायामीटर के साथ बना हुआ है और इसमें 6 लाइन का ब्राह्मी लिपि का मैसेज गढ़ा गया है। हालांकि, इसके ऊपरी हिस्से में गरुड़ देव के चिन्ह बने हुए हैं जो इसे और भी ज्यादा रहस्यमयी बनाते हैं क्योंकि अगर इसे ध्वज के लिए इस्तेमाल किया जाना था तो इसमें ये चिन्ह नहीं होने थे।
मन्नत पूरी करने की जादुई ताकत वाला स्तंभ?
आपने शायद अमिताभ बच्चन और तबू की फिल्म ‘चीनी कम’ देखी होगी जिसके आखिरी सीन में इसी स्तंभ का जिक्र है और इस स्तंभ में मन्नत पूरी करने की जादुई ताकत है। इस बात पर सालों तक लोग भरोसा करते रहे और जो भी आता वो अपने हाथों को उल्टा कर इस खंभे के डायामीटर से होते हुए हाथों को मिलाने की कोशिश करता।
लोग अपनी पीठ को टिकाकर इस खंबे के सहारे खड़े हो जाते और हाथों को उल्टा कर पकड़ने की कोशिश करते। ऐसा माना जाता है कि जो इसे करने में सफल हो गया उसकी एक मन्नत पूरी हो जाएगी।
1997 तक इस खंभे के इर्द-गिर्द फेंसिंग नहीं लगाई गई थी, लेकिन उसके बाद इस खंभे में इस मन्नत पूरी करने वाली प्रथा के कारण डैमेज होने लगा। ऐसे में उसे फेंसिंग के जरिए बंद कर दिया गया।