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वाराणसी

काशी विश्वनाथ धाम नवनिर्माण की चौथी वर्षगांठ पर विशेष धार्मिक अनुष्ठान संपन्न

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वाराणसी। श्री काशी विश्वनाथ धाम के नवनिर्मित परिसर के लोकार्पण को चार वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर शुक्रवार को पंचमुखी गणेश मंदिर प्रांगण में दिव्य वैदिक अनुष्ठानों की श्रृंखला आयोजित की गई। तीन दिवसीय उत्सव के तहत मंदिर परिसर पूरे दिन श्रद्धा और आध्यात्मिक वातावरण से सराबोर रहा।

कार्यक्रम के दौरान चिरंजीवी पूजन, नवग्रह पूजन, मृत्युंजय पूजन, गणेश पूजन, वरुण पूजन, महामृत्युंजय हवन, शिव पंचाक्षर जप सहित हनुमान चालीसा, रामरक्षा स्तोत्र और चण्डी पाठ जैसे वैदिक अनुष्ठान संपन्न किए गए।

शास्त्रों में वर्णित सात चिरंजीवियों—परशुराम, राजा बलि, विभीषण, हनुमान, महर्षि वेदव्यास, कृपाचार्य और अश्वत्थामा का स्मरण करते हुए चिरंजीवी पूजन किया गया। मान्यता है कि ये सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न हैं और आज भी पृथ्वी पर विद्यमान हैं।

इन सभी वैदिक क्रियाओं का संचालन विश्वेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने किया। सहयोगी शास्त्रियों में जितेंद्र द्विवेदी, देवआनंद मंडी, तरुण पांडेय, गिरीधर शर्मा, अभिषेक त्रिपाठी और सात बटुक शामिल रहे। गौरतलब है कि विक्रमी संवत 2078 के मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “श्री काशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद” के अंतर्गत नव-विकसित परिसर का लोकार्पण किया था। इसकी चौथी वर्षगांठ पर ही यह विशेष आयोजन रखा गया है।

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शुक्रवार को पंचमुखी गणेश मंदिर में आयोजित वैदिक श्रृंखला में गणेश सहस्रनाम पाठ, दुर्गा सप्तशती पाठ, रामरक्षास्तोत्र तथा हनुमान चालीसा के शतपाठ भी संपन्न हुए। शनिवार दोपहर शंकराचार्य चौक पर वैदिक यज्ञ और जायादी होम का आयोजन होगा। इसके बाद मंदिर परिसर में चतुर्वेद पारायण किया जाएगा, जिसमें आचार्य परंपरा के विद्वान वेदमंत्रों का पारायण करेंगे।

शनिवार की शाम शिवार्चनम् मंच पर ख्यातिनाम कलाकारों की प्रस्तुतियों के साथ भव्य सांस्कृतिक संध्या आयोजित की जाएगी। ये प्रस्तुतियां आध्यात्मिक वातावरण, भारतीय परंपरा और आधुनिक कलाओं का सुंदर समन्वय प्रदर्शित करेंगी।

तीन दिवसीय इस उत्सव ने भक्तों को धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भावनाओं से ओतप्रोत एक अद्वितीय अनुभव प्रदान किया है। दूर-दराज़ से आए श्रद्धालुओं ने न केवल विविध अनुष्ठानों में भाग लिया बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आनंद लिया।

यह आयोजन धार्मिक आस्था के सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और परंपरा की समृद्ध विरासत को भी पुनर्स्थापित करता है। विश्वनाथ धाम का यह उत्सव एकता, श्रद्धा और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बनकर उभरा है।

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