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वाराणसी

काशी में गूंजी शक्ति की गाथा, षष्ठी पर जगमगाएंगे सभी पूजा पंडाल

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वाराणसी। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (सोमवार) से शिव की नगरी काशी में दस दिवसीय शक्ति आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र आरंभ हो गया। नवरात्रि के प्रथम दिन शहर के सभी प्रमुख मंदिरों के साथ-साथ मां दुर्गा के मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। हर श्रद्धालु अपने व परिवार की मंगल कामना के साथ माता रानी के दर्शन कर सकारात्मक ऊर्जा के साथ परिपूर्ण हो गया।

बता दें कि, शहर में छह स्थानों पर मां दुर्गा की प्रतिमाएं विराजमान कराई जा रही हैं। दुर्गा पूजा की शुरुआत के साथ ही बनारस का वातावरण बंगाल के रंग में रंगने लगा है। काशी में दुर्गा पूजा की परंपरा की नींव भी बंगाली परिवार ने रखी थी। मित्रा परिवार ने ही शारदीय नवरात्र में बनारस को शक्ति की आराधना का मंत्र दिया था।

22 सितंबर से पूरे प्रदेश की पहली नौ दिवसीय दुर्गा पूजा की शुरुआत 56वें वर्ष में टाउनहाल से हो रही है। 55 साल पुरानी सार्वजनिक दुर्गोत्सव समिति की ओर से प्रतिपदा तिथि पर माता की प्रतिमा को विराजमान कराया गया।

शारदा विद्या मंदिर (गायघाट), श्री श्री दुर्गा समिति (नवापुरा), एसबी दुर्गोत्सव समिति (सुड़िया), श्री दारानगर दुर्गा पूजा समिति और बड़ा गणेश पर भी माता की प्रतिमाएं विराजमान होंगी। काशी में बंगाली ड्योढ़ी से दुर्गा पूजा की शुरुआत 251 वर्ष पूर्व हुई थी। कभी पूरे जिले में 512 से अधिक प्रतिमाएं स्थापित की जाती थीं।

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प्रतिपदा पर आरंभ हुई पूजा के साथ ही षष्ठी तिथि पर शहर के सभी पूजा पंडालों में प्रतिमाएं विराजमान हो जाएंगी। विशेषकर बंगीय पूजा पंडालों में षष्ठी तिथि पर मूर्तियों के आगमन के साथ घटस्थापना, बोधन, आमंत्रण और अधिवास के अनुष्ठान संपन्न कराए जाएंगे।

इस बार नवरात्र दस दिनों का होगा, क्योंकि चतुर्थी तिथि में वृद्धि हुई है। महाअष्टमी व्रत 30 सितंबर को रखा जाएगा। कलश स्थापना के लिए चार घंटे का अमृत मुहूर्त रहा। ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया कि कलश स्थापना का शुभ समय सुबह छह से आठ बजे तक और फिर सुबह 8:30 से 10:30 बजे तक रहा। साथ ही अभिजित मुहूर्त 11:33 बजे से 12:23 बजे तक रहा।

इस बार माता का आगमन हाथी पर हुआ है, जिसका फल अधिक वर्षा माना जाता है। गमन मानव के कंधे पर होगा, जो अत्यंत लाभकारी और सुखदायक है। दोनों परिस्थितियां अत्यंत शुभकारी मानी गई हैं। वहीं, आश्विन शुक्ल पक्ष में चतुर्थी तिथि की वृद्धि से यह पक्ष 16 दिनों का होगा, जो सुख-समृद्धि और शांति प्रदायक रहेगा।

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