गोरखपुर
करवा चौथ: अखंड प्रेम, अटूट विश्वास और चाँद की साक्षी में अर्पित सुहाग का व्रत

गोरखपुर। भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में ऐसे अनेक पर्व हैं जो न केवल सामाजिक एकता को दर्शाते हैं, बल्कि स्त्री की शक्ति, प्रेम और त्याग की भी अनोखी मिसाल पेश करते हैं। इन्हीं में से एक अत्यंत पवित्र और मनोभावन पर्व है “करवा चौथ”। यह व्रत सुहागन महिलाओं के लिए अटूट विश्वास, समर्पण और सच्चे प्रेम का प्रतीक माना जाता है। करवा चौथ का पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक ऐसी भावनात्मक डोर है जो पति-पत्नी के रिश्ते को और अधिक दृढ़, पवित्र और आत्मिक बनाती है।
करवा चौथ क्यों मनाया जाता है
करवा चौथ व्रत हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ सूर्योदय से लेकर चंद्रमा के दर्शन तक निर्जला उपवास रखती हैं। उनका यह व्रत अपने पति की दीर्घायु, सौभाग्य और समृद्ध जीवन की कामना के लिए होता है।
“करवा” का अर्थ मिट्टी का छोटा घड़ा होता है और “चौथ” का अर्थ चौथी तिथि। करवा में जल भरकर चंद्रमा को अर्पित किया जाता है। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं बल्कि एक जीवन दर्शन है, जो यह बताता है कि प्रेम, समर्पण और विश्वास से जीवन के हर संकट पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
करवा चौथ की शुरुआत कब और कैसे हुई
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, करवा चौथ की परंपरा महाभारत काल से जुड़ी हुई मानी जाती है। कथा के अनुसार, जब पांडव अपने वनवास काल में थे, तब द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत रखा था ताकि अर्जुन की दीर्घायु और विजय सुनिश्चित हो सके। इसके अतिरिक्त, एक और लोककथा अत्यंत प्रसिद्ध है, जो इस पर्व की आत्मा को उजागर करती है।
पौराणिक कथा – करवा और उनके पतिव्रत की शक्ति
बहुत समय पहले एक गाँव में करवा नामक एक स्त्री रहती थी। वह अपने पति से अत्यंत प्रेम करती थी और उसकी सेवा को ही अपना धर्म मानती थी। एक दिन जब उसका पति नदी में स्नान कर रहा था, तब वहाँ एक भयंकर नाग ने उसे डस लिया। पति तड़पने लगा, तो करवा ने बिना देर किए अपने करवे (घड़े) में जल भरकर उस नाग को बांध लिया और यमराज के पास पहुँच गई।
करवा ने यमराज से कहा “यदि आप मेरे पति का जीवन नहीं लौटाएंगे, तो मैं अपने तप और पतिव्रता बल से आपको शाप दे दूँगी। तब यमराज, करवा की निष्ठा और सच्चे प्रेम से प्रभावित हुए और उन्होंने उसके पति को जीवनदान दे दिया। तभी से यह विश्वास बन गया कि जो स्त्री सच्चे मन से यह व्रत रखती है, उसके पति की आयु लंबी होती है और उनके जीवन में सुख-संपन्नता बनी रहती है।
चंद्रमा को देखने का औचित्य
करवा चौथ के दिन चाँद का विशेष महत्व है। चंद्रमा को सौंदर्य, शीतलता और भावनात्मक स्थिरता का प्रतीक माना गया है। जब स्त्री व्रत पूरा कर चंद्रमा का दर्शन करती है और चलनी से अपने पति का मुख देखती है, तो वह इस पवित्र क्षण में यह संकल्प करती है कि उसका प्रेम, आस्था और समर्पण सदा अडिग रहेगा। चंद्रमा को जल अर्पित करने की प्रथा इस बात का संकेत है कि प्रेम में शुद्धता, धैर्य और शांति बनी रहे। यह प्रतीकात्मक रूप से स्त्री के त्याग और सहनशीलता का सम्मान भी है।
करवा चौथ का सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व
करवा चौथ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि भारतीय नारी के आत्मबल और संस्कारों का पर्व है। यह दिन नारी की भावनाओं, उसके स्नेह और जीवनसाथी के प्रति उसके समर्पण को दर्शाता है। इस दिन महिलाएँ नए वस्त्र धारण करती हैं, सोलह श्रृंगार करती हैं और समूह में कथा सुनती हैं। यह सामाजिक एकता का भी प्रतीक है जहाँ सभी महिलाएँ एक-दूसरे की खुशी में सहभागी होती हैं।
धार्मिक दृष्टि से यह व्रत शक्ति, भक्ति और श्रद्धा का संगम है। जैसे शिव-पार्वती के अटूट बंधन का स्मरण किया जाता है, वैसे ही हर स्त्री अपने पति में शिव का अंश मानकर इस व्रत का पालन करती है।
सुहागिन स्त्रियों पर करवा चौथ का प्रभाव
इस व्रत का स्त्रियों पर अत्यंत आध्यात्मिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है। व्रत रखने से उनमें धैर्य, निष्ठा, और आत्मसंयम की शक्ति बढ़ती है। यह व्रत स्त्री के आत्मबल को पुष्ट करता है।
उसके मन में भक्ति और श्रद्धा की भावना जागृत होती है।वैवाहिक जीवन में आपसी विश्वास और स्नेह गहराता है।मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी यह स्त्रियों में सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक संतुलन लाता है। आज भले ही युग बदल गया हो, परंतु करवा चौथ का महत्व आज भी वैसा ही है जैसा सैकड़ों वर्ष पहले था।

आधुनिक युग में करवा चौथ
आज करवा चौथ केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि प्रेम का उत्सव बन चुका है। अब पति भी अपनी पत्नियों के साथ उपवास रखते हैं, ताकि समानता और पारस्परिक सम्मान का संदेश दिया जा सके। सोशल मीडिया और फ़िल्मों के युग में भले ही इसका रूप आधुनिक हुआ हो, परंतु इसका आध्यात्मिक सार आज भी वही है – प्रेम, विश्वास और जीवनभर साथ निभाने की भावना।
करवा चौथ स्त्री के त्याग, प्रेम और शक्ति का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रेम में केवल शब्द नहीं, बल्कि समर्पण की गहराई होनी चाहिए।